मेरा होना मैमोरियल होने से अच्छा था |


डियर गोडसे लवर्स,
इतिहास इतना भी बेचारा नहीं है कि उसे बस मालाए पहना मुह मोड़ लिया जाये| तुम अचानक से मुझे इतना याद क्यों करना चाहते हो?| मेरे विचारो की पैकेजिंग अपने भाषणो में करते करते बोर फील कर रहे हो क्या?  तुम्हे याद दिलाना चाहता हूँ कि तुम सब मुझे भूल रहे हो , इतना भूलने लगे हो कि मेरे हत्यारे  को याद करने लगे हो ,उसकी मुर्तिया बनवाने लगे हो। मै  तुम सब के लिए कोटेशन बैंक बनकर रह गया हु. ।मेरे विचारो का कट पेस्टीकरण तुम्हारे  हवायी भाषनों मे जारी है। .
 मेरे नाम पर मैमोरियल है,मूर्तियां है,म्यूजियम है पर इट्स अमेजिंग! कि मै नही हूँ| मेरा होना मेमोरियल होने से बेहतर था |मैं मैमोरियल बनने के लिए नहीं मरा था,न ही मरने से पहले इसके लिए मरता था|गोडसे की मूर्ति की सम्भावना मुझे रोमांचित कर देती है । मै किसी चौराहे पर लाठी लिए बस उस दिन का इंतज़ार कर रहा हूँ जब  मेरे सामने फ्लैश मॉब  गोडसे की मूर्तियों पर सत्य और अहिंसा के नारे लगाएगी ।. इतिहास की उछाल ने मेरे दामन में क्या-क्या उड़ेल दिया है ।.???
२ जनवरी के बाद मै अनगिनत बार मर चूका हूँ। १९८४ हो या २००२ मै ही तो मरता आया हूँ। मै कभी किसी दल का नही रहा पर मेरे हत्यारे को देशभक्त कहने वाले लोग जरूर किसी दल से रहे होंगे।.मैं तुम्हारे केबिन में लगा(लगाया) सब देख रहा हूँ|मेरे सामने तुम हर रोज/डेली मुझे मारते हो|तुम मुझे डायरेक्ट किकक्यों नही मार देते!ये जो अहिस्ता-अहिस्ता बेवफाई है न,मेरी आत्मा में नासूर जख्म कर रही है|इतिहास कि उछाल ने मेरे दामन में कचरा उड़ेल दिया है|सो बेड
माय डिअर्स!
मैं बहुत टूट चुका हूँ|मैं तुम सब में जीना चाहता हूँ|‘आदर्श नहीं व्यवहारहोना चाहता हूँ|....मेमोरियल नही तुम सब की मेमोरी में रहना चाहता हु.... .कोई है?
-----------तुममे रोज मर रहा
आशुतोष तिवारी


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