बहन' सी है .....पर.'बहन'...... जितनी दूर नही !!!

नियतिहीनता का शिकार मैं , और ऊपर से ये खिसियाई दोपहर ..
'भटकन का आदर्श' लिए .... इधर -उधर भटकता मैं ..
गैस पर चढ़ी केतली सा ,..... या टीन के खाली कनस्तर सा ..
पूछता पागलों सा ..मुक्ति कहाँ??...और ..शांति कहाँ ??

आजकल ऊपर एक बादल है बंदरिया सा ,
निश्वार्थ बरसता है मुझ पर ..दिन के हर हिस्से में ..
प्यार सीखा नही मुझसे सिखाया है ..
शायद औरत और मर्द के बीच का यही बारीक फर्क है ..खैर ..

सुनो !..वो प्रेमिका नही है मेरी ..पर प्रेम प्रेमिका से भी गहरा ..
'बहन' सी है ..पर  'बहन' जितनी दूर नही ,
उसका वजूद जंगली है किसी बनैले हिरन सा ,
शायद किसी पेनकिलर सी धंसी है मेरे दिमाग में ..

ऐसा नही है 'शांत' हो गया हूँ ..किसी देवता सा ..
पर टिका हूँ और स्थिर हुआ हूँ ..उसकी देख- रेख में..
बेशक उसे बाय बोल दूँगा किसी रोज ,
पर ये सच है की उसका न होना ...
गलती से घट गई किसी दुर्घटना सा होगा ..

देखो हंसो मत ..और ..रोओ भी मत प्रिय ...
मै खुद का बोझ ढोता एक मुर्दा आदमी हूँ ,
मेरे स्मार्टफोन से झांकती तुम ...
और ..तुम्हारे बहिनापे से घिरा मै .....

आशुतोष तिवारी
भारतीय जन संचार संस्थान

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