नहीं आती कोई नज्म - की आये और वफ़ा के गीत कहे !!


मैं परेशान नहीं हूँ |  
पीड़ित भी नहीं हूँ |  
बेबस  हूँ  बस
क्युकी ज़िन्दगी जी सकने की उम्मीद पर मातम की तरह है | 
क्युकी पीड़ा का कोई अंत नहीं है | 
क्युकी इस दुनिया का कोई भी दुःख ,
आखिरी दुःख नहीं है | 
बेकार लगते हैं दिलासे और वफ़ा के ख्वाब ,  
-जैसे रिसते  जख्म पर कोई चाकू चलाता  है | 
सुख का एक तिनका भी सजा लगता है |
जब कोई कहता है ‘सब अच्छा हो जायेगा’,
तो बुरा लगता है |

मैं जानता हूँ |
कभी भी कुछ भी नहीं बदलता |  
इमारते और पुरानी हो जाती हैं | 
आदमी और बूढा हो जाता है |
समय और बीत जाता है | 
पलस्तर झड़ने लगता है | 
शरारतें बासी हो जाती हैं | 
वकत  के साथ तकलीफ,
ज़िन्दगी के दरिया को और तेजी से सुखाने लगती है |


नहीं आती कोई नज्म ,
- की आये और वफ़ा के गीत कहे | 
आता है ज्वार बदनसीबी का,
-जो भिगों देने के बाद भी नहीं जाता |
और जाता है तो छोड़ जाता है ,
– एक मायूस गीलापन |

आदमी अजीब है ,
– वह अपनी वेदना को आँखों से बहा देता है | 
जब दूसरे का दुःख कला बनकर उस तक पहुँचता  है |
तब वह हंसता हुआ ताली बजाता है | 
क्युकी,  वह भी जनता है – 
 की पीड़ा का कोई अंत नहीं है |  
की इस दुनिया का कोई भी दुःख,
 आखिरी दुःख नहीं है |

आशू


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