मैं परेशान नहीं हूँ
|
पीड़ित भी नहीं हूँ |
बेबस हूँ बस |
क्युकी ज़िन्दगी जी सकने की उम्मीद पर मातम की तरह है |
क्युकी पीड़ा का कोई अंत नहीं है |
क्युकी इस दुनिया का कोई भी दुःख ,
आखिरी दुःख नहीं है |
बेकार लगते हैं दिलासे और वफ़ा के ख्वाब ,
-जैसे रिसते जख्म पर कोई चाकू चलाता है |
सुख का एक तिनका भी सजा लगता है |
जब कोई कहता है ‘सब अच्छा हो जायेगा’,
तो बुरा लगता है |
पीड़ित भी नहीं हूँ |
बेबस हूँ बस |
क्युकी ज़िन्दगी जी सकने की उम्मीद पर मातम की तरह है |
क्युकी पीड़ा का कोई अंत नहीं है |
क्युकी इस दुनिया का कोई भी दुःख ,
आखिरी दुःख नहीं है |
बेकार लगते हैं दिलासे और वफ़ा के ख्वाब ,
-जैसे रिसते जख्म पर कोई चाकू चलाता है |
सुख का एक तिनका भी सजा लगता है |
जब कोई कहता है ‘सब अच्छा हो जायेगा’,
तो बुरा लगता है |
मैं जानता हूँ |
कभी भी कुछ भी नहीं बदलता |
इमारते और पुरानी हो जाती हैं |
आदमी और बूढा हो जाता है |
समय और बीत जाता है |
पलस्तर झड़ने लगता है |
शरारतें बासी हो जाती हैं |
वकत के साथ तकलीफ,
ज़िन्दगी के दरिया को और तेजी से सुखाने लगती है |
कभी भी कुछ भी नहीं बदलता |
इमारते और पुरानी हो जाती हैं |
आदमी और बूढा हो जाता है |
समय और बीत जाता है |
पलस्तर झड़ने लगता है |
शरारतें बासी हो जाती हैं |
वकत के साथ तकलीफ,
ज़िन्दगी के दरिया को और तेजी से सुखाने लगती है |
नहीं आती कोई नज्म
,
- की आये और वफ़ा के गीत कहे |
आता है ज्वार बदनसीबी का,
-जो भिगों देने के बाद भी नहीं जाता |
और जाता है तो छोड़ जाता है ,
– एक मायूस गीलापन |
- की आये और वफ़ा के गीत कहे |
आता है ज्वार बदनसीबी का,
-जो भिगों देने के बाद भी नहीं जाता |
और जाता है तो छोड़ जाता है ,
– एक मायूस गीलापन |
आदमी अजीब है ,
– वह अपनी वेदना को आँखों से बहा देता है |
जब दूसरे का दुःख कला बनकर उस तक पहुँचता है |
तब वह हंसता हुआ ताली बजाता है |
क्युकी, वह भी जनता है –
की पीड़ा का कोई अंत नहीं है |
की इस दुनिया का कोई भी दुःख,
आखिरी दुःख नहीं है |
– वह अपनी वेदना को आँखों से बहा देता है |
जब दूसरे का दुःख कला बनकर उस तक पहुँचता है |
तब वह हंसता हुआ ताली बजाता है |
क्युकी, वह भी जनता है –
की पीड़ा का कोई अंत नहीं है |
की इस दुनिया का कोई भी दुःख,
आखिरी दुःख नहीं है |
आशू
(गूगल से सीधे ब्लॉग पर जाने के लिए 'Bhatkan ka Adrsh' सर्च करें |)
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें