समय का बहना और उम्र का गुज़रना , समय और उम्र का हमसफ़र होना है। दीवालों पर लगा पलस्तर पुराना हो जाता है, घड़ी के डायलों पर कसा हुआ आदमी उम्रदराज़ हो जाता है । हमारे यक़ीन, ख़यालात और एहसास के चरम भी पुराने पलसतर की तरह वक़्त की दीवाल से झड़ने लगते हैं। सब कुछ अंततः स्मृति बन कर रह जाता है। शब्द और स्मृति - शब्द स्मृतियों के मूर्त रूप हैं और इनके होने ने ही बहुत कुछ 'हुए को' बचा कर रखा है।
इन्ही शब्दों की सांध्य बेला पर स्मृतियाँ लिए एक औरत खड़ी है। एक उदास औरत, जिसके प्रेम की चाह एक अरसे बाद तृप्त हुई । जीवन असीम है, बदलवा भरा है । समय के साथ स्वप्निल एहसास और ज़िंदा हक़ीक़त का विराट खेल उसका जीवन अलग तरह से रचता है। वह रचनाधर्मी औरत जानती है कि 'चल रहा' और 'बचा रह गया' कैसे संजोया जाए । हर रोज़ अपनी डायरी लिखती है। उसकी डायरी की कुछ इंट्रीयां हैं, जिसकी तिथियाँ उसकी खुसियों की तरह ग़ायब कर दी गई हैं। आप पढ़िए और उदास हो जाइए।
एक उदास औरत की डायरी -
मन के अंदर की छाया , मेरे ‘वास्तव’ की छलना ,
तुम क्यों जीवन में आए , मेरे वजूद की तृष्णा ।
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अब इस ख़ाली से दिल में , उम्मीदों के साहिल पर ,
सुख के जुगनू आ जाते, तेरी आहट को पा कर ।
मेरे चेहेरे की दीप्ति , तेरी आँखो पर सजना
पक्षी बन कर उड़ जाना , सब कुछ मुमकिन सा लगना ।
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डायरी पर पन्ने पलटे ,लिखती हूँ नाम तुम्हारा
स्मृति तो शेष रहेगी , यदि बन न पाई सहारा ।
गुज़री उम्रों के धब्बे , अब मुझ को नही सताते ,
जब भी जड़ता सी लगती , पारस बन तुम आ जाते ।
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अब लगता है जीवन है , स्वप्नो की सच्ची छाया
कुछ सतकर्मों का प्रतिफल , शायद जो तुम्हें मिलाया
चार साल बाद की दो आख़िरी इंट्री -
मेरे मानस की चिंता , मेरे स्वप्नो का जलना ,
पति का क़रीब हो जाना, बच्चों के ख़ातिर ढलना
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मै ख़ुद स्त्री हूँ उनकी , लिख चुकी संधि पथ अपना
तुम अपनी राह बनाओ , मेरे वजूद की तृष्णा ।
आशुतोष तिवारी
(ख़ुद के बारे में कुछ लिखने की हैसियत नही है . यह कविता पूरी हो कर कुछ रोज़ बाद गीत के फ़ॉर्मैट में मेरे यू ट्यूब चैनल ' The Unbreakable Voice पर मिल सकती है। )
writing style is captivating .
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