राजकमल चौधरी की कहानियां

राजकमल चौधरी की कहानियां एक झिलमिल दीवार के माफिक है। वह सेक्स के नाम पर तल्लीनता का चकमा देती हैं और फिर अपने अवसान पर पाठक को लहूलुहान कर जाती हैं। राजकमल मूल्य हीन लेखक नही हैं , वह मूल्यहीनता के लेखक हैं, उस अनास्था के लेखक जो जुर्म , शराब और सेक्स के रास्ते साकार हो रही है। शराब, सेक्स और नकारिता यहां लेखन का आधार नही है, बल्कि उस दुर्घटना का परिणाम है, जो आम आदमी के साथ इस रौंद डालने वाली व्यवस्था ने की है।


 राजकमल निर्मम यथार्थ के लेखक हैं। शिल्प के स्तर पर इनका व्याकरण शराब खानों की बियर ग्लासों की चकमक से लैस और कांपते ओंठो से जलती स्खलित देह की उंगलियों से लिखा गया है। हर लेखक अपने शब्दों की एक तिजोरी बनाता है, जहां वह समूची सामग्री चुन चुन कर जमा करता है। निर्मल जहां प्राग के एकांत से बाहर नही निकलते, जहां धूमिल अदालती शब्दो के बगैर कुछ नही रचते, जहां मुक्तिबोध मनोविज्ञान की गठरी जमा कर चलते हैं, वहीं राजकमल वैश्यालयों और बियरबारो से अपना परिवेश गढ़ते हैं। 

 उस समय मे जब सचमुच सब कुछ मरा हुआ सा है। हर आदमी जब अपनी खोपड़ी अपनी पीठ पर किसी तरह टांग कर दिन भर शहर में घूम किसी तरह जिंदा रह लेने की फिराक में लगा है। बियरबार और ब्रोथेल जहां हर दिन आदमी के खालीपन को भरने के अभ्यास से बढ़ रहे हैं। उस मरे हुए समय मे कोई वजह नही की राजकमल को न पढ़ा जाए और उन्हें अश्लील कह कर नकार दिया जाए। यह रोटी, सेक्स और सुरक्षा के जटिल व्याकरण से रचा गया सल्फास है। खा लीजिये, और ज्यादा मुकम्मल हो कर उबरेंगे।


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