भारत प्रयोगधर्मी परम्परा का राष्ट्र है |


धर्म की अवधारणा पंथ या रिलीजन से परे है। यह उदात्त मानवीय मूल्यों का समुच्चय है। आगरा में धर्मांतरण की घटना सामने आते ही यह विषय समकालीन बहसों के केंद्र में है।संसद में इस मुद्दे पर विमर्श हुआ। विमर्श कम विवाद अधिक हुआ। भारत प्रयोगधर्मी परम्परा का राष्ट्र है। विविध आस्थाएं भारत के आँगन में पल्लवित हुई हैं। संविधान में धर्म के चुनाव की आजादी मौलिक अधिकारों में संकलित है।    नेहरू के विशेष हस्तछेप से अनुच्छेद २५(१) में धर्म के प्रचार की स्वतंत्रता दी गयी। उपर्युक्त स्वतंत्रताओं के अतिरिक्त  संविधान जबरन या लालच देकर धर्म परिवर्तन की अनुमति नही देता।
धर्म परिवर्तन विशुद्ध सामाजिक-राजनीतिक मसला है।तबलीगी और शुद्दि जैसे धर्मांतरण आंदोलन आजादी के पहले से मौजूद रहे।   इस विषय पर 1927 में अशफाक उल्ला खॉ का देशवासियो के नाम लिखा खत प्रेरणाष्पद है। वह लिखते हैं कि सात करोड़ मुसलमानों को शुद्ध करना नामुमकिन है उसी तरह यह सोचना भी फिजूल है की 25 करोड़ ( उस समय की हिन्दू आबादी ) हिन्दुओ को इस्लाम कबुल करवाया जा सकता है मगर हॉ, यह आसान है की हम सब गुलामी की जंजीर अपने गले डाल रहे हैं।अशफाक के पत्र का यह अंश आज भी प्रासांगिक है ।हमारा समाज अपने समय की दुर्दान्त   समाजिक - आर्थिक समस्याओं  का गुलाम है। क्रान्तिकारी चेतना गुलामी से आजादी की और रही है। यदि बी.पी.एल. कार्ड के लिए लोग धर्म परिवर्तन को तैयार हैं तो गरीबी का अनुमान लगाने के लिए ऑकणो की जरूरत नहीं पङेगी। घरवापसी जैसे मुद्दे विकासोन्मुख मार्ग से भटकाव का सूचक है।
संख्या में सीमित प्रतिपक्ष संसद में मुखर है। प्रतिपक्ष की मुखरता जनतंत्र के लिए स्वास्थप्रद होती है।  धर्मान्तरण के मुद्दे  पर विपक्ष का रवैया सेलेक्टिव है। आगरा में मतांतरण की घटना इस तरह की पहली घटना नही है। इसे इसाई मिशनरियां व ऐसे ही दूसरे संगठन वृहत पैमाने पर योजनाबद्ध रूप से इस कृत्य में वर्षो से कार्यरत है। विपक्षी दल इन घटनाओं पर लगभग खामोश रहे हैं। आगरा में धर्म परिवर्तन की घटना पर खेद जताने वाले दलों की अब तक की घटनाओं पर चुप्पी उन्हें सवाल खड़े करने का नैतिक आधार नही देती। दूसरा ,विपक्ष का रूख  इस मुद्दे पर स्पस्ष्ट नही है। हल्ला- हंगामे के बाद वाक़ैया नायडू द्वारा धर्मांतरण पर पूर्ण प्रतिबन्ध की पहल होते ही विपक्षी खेमा दुविधाग्रस्त व् किंकर्तव्यविमूढ़ नजर आया । यदि वास्तव में धर्म परिवर्तन से भारतीय सामाजिक ताना- बाना छिन्न - भिन्न होता है ( जैसा की विपक्ष कह रहा है ) तब धर्माँतरण पर पूर्ण प्रतिबंध से अच्छा कोई विकल्प नही हो सकता। विपक्ष को इस विषय पर अपना विचार स्पष्ट करना चाहिए क्योंकि लालच देकर या जबरन धर्मांतरण पहले से प्रतिबंधित है
धर्म का प्रचार धर्मांतरण को प्रोत्साहित करता है।स्तम्भकार न.के सिंह ने अपने एक लेख में अनुबंध २५(१) पर सवाल किये हैं।  ईसाई निशनरी स्टेंसलास ने सर्वोच्च न्यायालय में अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि प्रचार में धर्मांतरण अन्तर्निहित है। आज धर्म का प्रचार व्यपक पैमाने पर जनसंचार के साधनो से हो रहा है। जगदीश्वर चतुर्वेदी ने अपनी किताब साम्प्रदायिकता,आतंकवाद और जन माध्यम मे लिखा है कि किसी भी धर्म का प्रचार जब जनसंचार के माध्यमो से होता है तब वह धर्म का परावर्तन नही करता बल्कि धार्मिकता पैदा कर गोलबन्दी  करता है। गोलबंदी व आस्था भिन्न है। धर्म व्यक्ति का बेहद निजी मसला है। गॉधी जी  के शब्दों में धर्म ईश्वर व इंसान के बीच का व्यक्तिगत रिश्ता है। लालाच देकर या जबरन धर्मांतरण एक धर्म विरोधी कृत्य है। धर्मांतरण  का यह विवाद  सबके साथ सबके विकास में बाधक है।
आशुतोष तिवारी 

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