बदलाव की बदसूरती
यही है की वह तेजी से आदर्शो को ‘इतिहास’ में तब्दील कर देता है।स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान
पत्रकारिता को ‘व्यवसाय’ नही बल्कि ‘मिशन’ का दर्जा प्राप्त था। ‘पत्रकारिता
व्यसाय नही मिशन’ का आदर्श वाक्य आज नारे
में तब्दील होकर पत्रकारिता विषयक भाषणो में आक्रामक उत्प्रेरक बनकर रह गया है।
आगरा घोषणा पात्र की ३४वॆ वर्षगांठ पर नेशनल जर्नलिस्ट मीट २०१५ कार्यक्रम में उत्तर
प्रदेश के राजयपाल राम नाइक ने पत्रकारों को ब्रेकिंग न्यूज़ से पहले खबर की सत्यता
जांच लेने की सलाह देकर एक सार्थक बहस को जन्म दिया है। राजयपाल ने चिंता व्यक्त
करते हुए कहा की मीडिया लोकतंत्र को चौथा स्तम्भ हैं।उस पर समाज में बदलाव की
जिम्मेदारी है। आजकल मीडिया में कम्पटीशन का दौर है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी
खबर दिखाने से पूर्व उसकी सच्चाई जांच लेनी चाहिए। राजयपाल की अभिव्यक्तियाँ भले
ही सूक्ष्म हो परन्तु निहितार्थ व्यापक होते हैं। राजयपाल की चिंताए आज की
पत्रकारिता को देखकर निसंदेह प्रासंगिक है।
आज इलेक्ट्रॉनिक
माध्यम पर खबरिया चैनलों की भरमार है। सभी ‘हर कीमत पर’ ‘सबसे तेज’ ‘सच और सिर्फ सच’ दिखने के लिए उद्यम करने का दावा कर रहे हैं। न्यूज़ चैनलों
की अभिव्यक्ति से लेकर गतिविधिओं तक इतनी आपाधापी है कि आम दर्शक इनके गिरफ्त में
आते ही अपने अंतर्मन की निस्तब्धता का अपहरण कर बैठता है। दर्शक का हर पल चटपटा बनाने को
बेताब ये माध्यम खबर से ज्यादा दर्शक के दिमाग में विज्ञापन(मनोवज्ञानिक पद्धति से
निर्मित) ठेलने का काम कर रहे हैं। जब दर्शक अपनी शामो को प्राइम कालीन चौपालो में
अपने आप को खफा रहा होता है ठीक उसी समय न्यूज़ रूम में इस बात पर डिस्कशन चल रहा
होता है कि कल दर्शक को दिमाग को कौन सी खुराक देनी चाहिए ।.परदे पर प्रत्यछ जितना
‘प्रकाश’ है नेपथ्य में
उतना ही ‘अन्धकार’। दर्शक प्रकाश
पर फ़िदा हो फंसता है और अन्धकार में चला जाता है। जब बासी न्यूज़ बाइटो को बार बार
नमक मिर्च लगाकर दिखाना दर्शक को उबाऊ लगने लगा तो नियो मीडिया ने ब्रेकिंग न्यूज़
के फटाफट कांसेप्ट का अविष्कार किया। दर्शक हर पल कुछ जानना चाहता
है। वह स्वभाव से जिज्ञासु है। ‘क्या हो रहा है?’ को जानते रहना ही आज की आधुनिकता है। मीडिया
दर्शक के इस मनोविज्ञान को बेहतर संमझता है। वह दर्शक की जिज्ञासु वृत्ति से परिचित है। मीडिया दर्शक
की इसी जिज्ञासा का व्यापार करता है।
ब्रेकिंग न्यूज़
में पूर्ण खबर नही होती ,खबर एक टुकड़ा
होता है।.खबरिया चैनल हर दो मिनट में उसी टुकड़े को सनसनी खेज अंदाज में दर्शक के
सामने लजीज व्यंजन की तरह परोसते रहते है। .मीडिया के लिए यह आवशयक है। इससे दर्शक
रुका रहेगा ।वह खरीदता रहेगा। TRP देता रहेगा। .
मीडिया को व्यवसायिक सफलता के लिए TRP के उच्च मानक
चाहिए। TRP चैनल को विज्ञापन दिलाती है। विज्ञापन से
मीडिया का जीवन चलता है। .मध्यम दर्शक टेलीविज़न को डिब्बा संमझता है पर डिब्बा तो
दरअसर दर्शक का दिमाग है जिसे मीडिया दिन रात उबाऊ विज्ञापन की घुट्टिया मिनट दर
मिनट पिलाया करता है ।
विगत वर्षो में
पीत पत्रकारिता ने भी जोर पकड़ा है। ‘.सत्य’ और ‘मीडिया जनित सत्य’ के अंतराल ने पीत पत्रकारिता में कीर्तिमान स्थापित किये
हैं। .स्ट्रिंग ऑपरेशन के नाम पर नामी गिरामी कोयला कंपनी के मालिक को ब्लैकमेल करने के मामले में एक
प्रसिद्द चैनल के वरिष्ठ समदक वर्तमान में जमानत पर पत्रकारिता कर रहे है।
.अखबारों की दुनिया में सम्पादकीय दुराचरण की दर में वृद्धि हुई है। .ओपिनियन पोल
और एग्जिट पोलो के नाम पर जनसंचार के फटाफट माध्यम जनमत का कचरा कर रहे हैं। .खबरो
को पेश करने का अंदाज कुछ इस तरह का है कि वह पेड न्यूज़ न होते हुए भी दर्शक के
दिमाग को किसी पक्ष में ख़ास तरह से प्रभावित कर रही है। .इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ‘विषय केंद्रित बहसों’ का स्थान ‘निर्थक चटपटी वाकपटुता’ ने ले लिया है। .रात्रि कालीन बहसों में ‘प्रबुद्ध तथा तार्किक एंकरो’ की जगह
बेवजह आक्रामक स्पिन मास्टरों (बातो को
घूमने फिरने में माहिर) ने ले ली है ।. राज्यपाल ने सही ही कहा कि पत्रकारों पर
समाज को बदलने की जिम्मेदार भी है। .यह आदर्श मीडिया को भी आत्मसात करना चाहिए। मीडिया कोई भीड् जुटाऊ जोकर नही है बल्कि एक
जिम्मेदार माध्यम है .l जनमत का प्रवाह
ही लोकतंत्र की जीवन शक्ति होता है और मीडिया जनमत निर्माण में अहम भूमिका निभाता है ।.
स्वतंत्रता के
संघर्ष में पत्रकारिता की महती भूमिका रही है। .तिलक, गांधी और राजाराम मोहन राय
जैसे नेताओ ने पत्रकारिता को स्वतंत्रता प्राप्ति का औजार बनाया है। .कई देशो में
पत्रकारिता का विपक्ष का नेता जैसे अलंकारो से नवाज गया है। क्रांतिकारियों ने कलम
को तलवार का विशेषण दिया है ।राष्ट्रपिता
महात्मा गांधी ने अहिंसक उपायो में सत्य की विजय के लिए अखबार को एक महत्वपूर्ण व
अनिवार्य साधन माना है ।वह स्वयं कई पत्र पत्रिकाओ (हरिजन, हरिजन बंधू, हरिजन सेवक ,
नवजीवन,यंग इण्डिया ) के संपादक रहे।
.महात्मा गांधी ने स्पष्ट किया है कि ऐसी कोई भी लड़ाई जिसका आधार आत्मबल हो अखबार
की सहायता के बिना नही चलायीं जा सकती। . अहिंसक उपयों से सत्य की विजय के लिए
अखबार एक अनिवार्य साधन है। शिक्षाविद डॉक्टर तिवारी ने अपनी एक रचना में अंधियारे
विश्व में अखबार को दीपक की संज्ञा दी है ।.अकबर इलाहाबादी की अत्यंत
प्रसिद्द पंक्तिया है कि खींचो न कमानो को न तलवार निकालो जब टॉप मुकाबिल
हो तो अखबार निकालो। . हो सकता है कि आज इलाहाबादी की ये पंक्तिया व्यवहारिक
यथार्थ न हो पर पत्रकारिता को अपना आदर्श और ध्येय तो ऎसे ही वाक्यो को बनाना
चाहिए। ..
संविधान नही
बल्कि समाज ने पत्रकारिता को चौथे स्तम्भ की मान्यता प्राप्त है। . चौथे स्तम्भ की
यह जिम्मेदारी है की वह सजग प्रहरी की तरह तीनो स्तम्भो पर नजर रखे। .यदि वह अपने
कर्तव्यों के साथ न्याय नही करेगा तो त्रस्त जनता , दैनिक पाठक ,आम दर्शक किससे
सच की उम्मीद करे। . निष्पक्षता पत्रकारिता का पहला मन्त्र है। .इस मन्त्र की
सिद्धि के बिना पत्रकारिता का समस्त जाप निरर्थक है। .बिकना पत्रकारिता का गुण
धर्म नही ।.बिका हुआ पत्रकार सबसे खतरनाक जंतु होता है। .
आशुतोष तिवारी
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