चुनाव जनतंत्र का सच्चा सिनेमा है। चुनावी नतीजे
जनतंत्र का वह जादुई छण है जो सिनेमा हॉल में क्लाइमेक्स का होता है। दिल्ली विधान
सभा चुनाव में कुल ७० सीटो में आप ने ६७ सीटें जीतकर न केवल सभी को चौंका दिया
बल्कि एग्जिट पोल , ओपिनियन पोल और
पार्टी पोलो को भी गलत साबित किया है।किसी का उदय अवश्य ही किसी के अस्त होने का
संकेत होता है। दिल्ली में आप का उदय हुआ,भाजपा अस्त हुई। सब वाद हार गए , ‘जनवाद’ जीत गया।
दिल्ली पलायन की प्रेमिका है ।यह विस्थापितों का शहर
है ।बहुलता दिल्ली की प्रकृति है। इसी दिल्ली में अन्ना आंदोलन हुआ। इतिहास गवाह
है कि हर आंदोलन अपनी इति तक आते आते एक दो सूरमाओं को जन्म दे जाता है। तमाम चर्चित नेता जेपी से लेकर लोहिया तक
के आंदोलन की उपज रहे है। . अन्ना आंदोलन की कोख से अरविन्द केजरीवाल का जन्म हुआ
। दोहराव इतिहास की प्रिय प्रक्रिया है ।मई २०१४ में लोकसभा चुनाव में देश में भाजपा ने इतिहास बनाया। देश की राजधानी दिल्ली में भाजपा
इतिहास बन गयी ।
बहुधा पार्टिया हारकर दार्शनिक हो जाती है। पराजित
खेमे की किसी योद्धा ने कहा है कि हार-जीत तो चुनावी प्रक्रयी का हिस्सा है और यह
चलता रहता है। .क्या यह सच है। . इतना तो सच है कि नतीजों के दो ही विकल्प
होते है हार या जीत पर यह महज सामान्य प्रक्रिया नही बल्कि नतीजों में कई संकेत व्
सन्देश भी होते है.।इन संकेतो पर विमर्श और चिंतन तब तो और भी आवश्यक हो जाता है
जब पराजित दल को ऐसी पराजय का पूर्वानुमान भी न हो।.चुनाव परिणामो ने स्पष्ट कर
दिया है कि नरेंद्र मोदी अनबीटेबल पर्सन नही है बल्कि वह भी आम आदमी की तरह ही है
जो आम आदमी से हार भी सकते है ।.लगातार चुनाव जीतती आ रही भाजपा ने दूसरे दलो को
एकांत चिंतन के लिए मजबूर कर दिया था। अब भाजपा का विजयरथ रुका है इसलिए उसे
आत्ममंथन की जरुरत है।.यह जरुरत तब और बढ जाती जब कई राज्यों के विधानसभा के चुनाव
उसके सामने है।
खस्ताहाल कांग्रेस चुनावी नतीजे सुन बेशक बेहाल हुई
होगी पर पार्टी की अंदरुनी प्रक्रिया देखकर ऐसा लगता नही है कि उसने कोई सीख ली है। .पार्टी के बचे-खुचे समर्थक प्रियंका लाओ
कांग्रेस बचाओ का नारे लगाते पार्टी कार्यालय के बाहर देखे गए हैं। मुमकिन है कि
राहुल गांधी जल्द ही हार के कारणों पर चिंतन शिविर का आयोजन करे।हालांकि चिंतन
शिविर आयोजित करने से अच्छा है कि लगतहार हारती आ रही कांग्रेस को नेतृत्व
परिवर्तन के प्रति कोई कठोर निर्णय लेना चाहिए।
सिद्धान्तता झूठे वादे राजनीतिक कृकत्य के दायरे में
आते है पर व्यवहारिकताः मिथ्या वादे राजनीती में मान्यता प्राप्त कायदे है ।.हर
बार चुनावी बादलो से वादो की जमकर बारिश होती है। .चुनाव के बाद आसमान साफ़ हो जाता
है ।.एक और तो वयदाख़िलाफ़ी की बाढ आ जाती है तो दूसरी और विकास का सूखा पढ जाता है।
इतिहास बताता है कि दिल्ली इस तरह के सूखे की आदी नही है ..सरकार किसी की भी हो
उन्होंने विकास किया है(करना पड़ा है) ।इस बार भी ढेर सारे वायदे आप सहित सभी
पार्टियो ने किये थे। उन वादो को पूरा करना डरावना जनादेश लेकर आई आप के लिए एक
चुनौती होगा। .सभी वादे एक दो महीने में पुरे नहो सकते इसीलिये आप नेता आशुतोष ने
धैर्य रखने पर जोर दिया है। ..कुछ भी हो पर आप ने जिस तरह से विपक्ष पर वोटो की
बमबारी की है विपक्ष सहित विश्लेषक भी मूक हो गए है।
अरविन्द केजरीवाल मौजूदा राजनीति के क्षितिज पर शीघ्र
निर्णेता बनकर उभरे है |शीघ्र निर्णेता होना उचित तो है पर इसमें विवेक का
अंश भी आवश्यक है|आम आदमी पार्टी
ने चुनाव से पहले कई लोक-लुभावन वायदे किये है |मुफ्त पानी, आधे दामो पर बिजली फ्री वाई- फाई, कॉलेजों
का निर्माण तथा महिला सुरक्षा से जुड़े कई ऐसे वायदे
हैं जो कि एक आम मतदाता को अपनी ओर आकर्षित करने का माद्दा रखते है |"आप" की इसी
पॉपुलिस्ट पॉलिटिसिक्स पर हाल ही में कई सवाल उठे है| पहला सवाल तो यह है कि आप जो कि अलग राजनितिक संस्कृति की दावेदार है वह अन्य
राजनीतिक दलो की तरह लोक लुभावन राजनीती क्यों कर रही है | हमारी राजनीती में मुफ्त रंगीन टीवी, मंगलसूत्र , मोबाइल लैपटॉप से लेकर साइकिल और सांणियो को मुफ्त में देने के वायदों का
प्रचलन रहा है | आप का जन्म इसी
लोक लुभावन राजनीतिक भावना के विरोध में हुआ है | किसी भी कलयाणाकरी आदर्श राज्य का पहला कर्तव्य यह है की वह अपने नागरिको को
कौशल विकास (स्किल डेवलपमेंट ) के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाये |राज्य की परिधि
में समुचित रोजगार प्रबंध करे ताकि युवा शक्ति बेरोजगारी में अपनी क्षमताओ को
कुंठित करने से बचाये | व्यर्थ की मुफ्तखोरी से राज्य में न ही रोजगार का सृजन होगा बल्कि उलटे आलस्य
व अकर्मण्यता को बल मिलेगा| आम मतदाताओ को भी इस लोकलुभावन मॉडल को संघमझना चाहिए| आजकल कि व्यवसायिक दुनिया में कुछ भी मुफ्त में हासिल नही होता | केजरीवाल या किसी के द्वारा भी किये गए एक राजनीतिक वायदे को बोझ प्रत्यक्षतः
या अप्रत्यक्षतः जनता कि जेब पर ही पड़ता है है | चूँकि न्यायलय पहले ही यह स्पष्ट कर चूका है की मुफ्त उपहार दिए जाने से जन मत
प्रभावित होता है|जनमत स्वस्थ हो
इसलिए दलों को ऎसे उपहारों से परहेज करने की
सलाह भी न्यायालय दे चूका है| कानून भी मुफ्त
उपहार की परम्परा जन प्रतिनिधि अधिनियम के अनतर्गत भ्रस्टता की श्रेणी में रखा गया
है | इसलिए दिल्ली के
चुनाव में आप ने प्रतिरक्षात्मक तरीके से पुरानी परमपरा को नए अंदाज में जारी रखा
है |सवाल यह उठता की फिर यह पुरानी राजनीती से अलग होने का बेजा दावा क्यों है |
दूसरा सवाल दिल्ली के बजट से सम्बंधित है| हम सब जानते है कि आप ने भारी भरकम चुनावी वायदे किये हैं | इन चुनावी वायदो को पूरा करने के लिए जिस राशि कि जरुरत होगी उसका आकलन मीडिया
ने ढाई लाख करोड़ के आसपास किया है किन्तु दिल्ली का कुल बजट ३७००० करोड़ के आसपास
बताय जा रहा है |ऎसे में लाखो कैमरे ,झुग्गी ,झोपड़ियो तथा पाश इलाको को स्थाई रूप से बुनियादी
सुविधाये कैसे संभव हैं | इसी पर चिंता व्यक्त करते हुए वरिष्ठ सतम्भकार विभांशु दिव्याल ने टिप्पड़ी कि
है कि हो सकता है कि यह सरकार पैसे कि समस्या का कोई तात्कालिक हल निकाले |लेकिन जिस
व्यवस्था कि समूची बनावट आम आदमी के हित कि तमाम घोषणाओ ,आडम्बरो और भर-भर
आस्वसनो के बावजूद आम आदमी के विरुद्ध और व्यवस्था के सरे अंग -उपांग केवल उसकी सेवा में खड़े हो |जिसके पास कुछ है
या जो कुछ पाने के लिए व्यवस्था को अपने हित में दुह सकता है वहा इसके मौजूदा
चरित्र के चलते इसे आम आदमी के पक्ष में मोड़ना असंभव नही असंभाव्यतः के निकट अवस्य है | तो क्या आप इस असंभाव्यतः को संभाव्यतः में
बदल सकती है | यह एक सनातन सवाल है जो कि सम्पूर्ण राजनीतिक पद्धति में सवाल उठता है|
चूँकि आप ने अलग राजनितिक संस्कृति का दावा किया है |इसलिए आवश्य ही
इस दल से उम्मीद तो कर ही सकते है |ऐसा नहीं है कि केजरीवाल ने इन सवालों का जबाब नहीं
दिया है |उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए भी स्पष्ट किया है कि उनके किये वायदों को हवाई
वायदा नहीं मानना चाहिए और न ही यह मानना चाहिए उनके पास कोई योजना नहीं है ।केजरीवाल का कहना है की उनके पास अपने वादों को पूरा
करने के लिए ठोस योजना है और इस योजना के क्रियान्वयन का एक सव्विचारित रोड मैप भी
है ।उनके पास सरे
वायदों को पूरा करने के लिए व्यवहारिक
नाप जोख है |जिसके चलते सारे वादे जमीं पर उतरेंगे और दिल्ली कि झुगी झोपड़ियों से लेकर पास
कालोनियों तक राहत ठोस शक्ल में पहुंचेगी। फिलहाल अभी हमें केजरीवाल के स्पष्टीकरण
पर विश्वास करना चाहिए क्योंकि केजरीवाल ने दिल्ली कि जनता को चाँद देने का वायदा
किया है। वास्तविकता में ये वादे इस तरह है कि यदि पुरे हुए तो दिल्ली का कायाकल्प
हो जाएगा और राम राज्य कि आकाश कुसुम परिकल्पना व्यवहारिक यथार्थ में तब्दील हो
जाएगी ।इस चुनाव में
सवाल सिर्फ लोकलुभावन राजनीती का ही नही है एक ऊँगली मतदाताओं की ओर भी संकेत कर
रही है। मतदाताओं को यह समझना चाहिए और स्वंय से पूछना चाहिए की क्या हम सभी अपनी
शारीरिक -मानसिक क्षमताओं को निष्क्रिय कर सब्सिडी तथा सरकारी गिफ्ट वाउचरों पर
जीने के आदि तो नहीं होते जा रहे हैं |
आशुतोष तिवारी
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें