राष्ट्रवादी कुंठाएं खुद को प्रासंगिक रखने की हवस में अक्सर अपना निशाना अभिव्यक्ति के मासूम जन माध्यमो को बनाती आयी हैं |


राष्ट्रवादी  कुंठाएं  खुद  को  प्रासंगिक  रखने  की  हवस  में  अक्सर  अपना  निशाना  अभिव्यक्ति  के मासूम  जन माध्यमो  को  बनाती  आयी हैं  |  इस  बार  भी  बेहद  जरुरी  बताई  जाने  वाली  'अभिव्यक्ति  की  आजादीके  साथ  कोई  नया  सलूक  नही  हुआ  वही  हुआ  जो कभी   'संस्कृतिकभी 'एंटी  नेशनल' तो कभी   'भावनाओ  के  आहत होने' के नाम पर अब तक होता आया है |१६ दिसंबर को हुई बलात्कार की घटना ने पुरे देश को झकझोर दिया था |मानवता को शर्मसार कर देने वाली इसी घटना पर ब्रितानी फ़िल्मकार 'लेस्ली उडविन' ने 'इण्डियास डॉटर' नाम से एक डॉक्यूमेंट्री बनायीं है| सरकार ने इस वृत्तचित्र को देखे बगैर प्रतिबंधित कर दिया है |कई सामाजिक संगठन , बुद्धिजीवी सहित मीडिया का एक बड़ा वर्ग प्रतिबन्ध को गैरजरूरी बता प्रतिबन्ध का विरोध कर रहा है|
फिल्म को प्रतिबंधित करने के लिए जो तर्क दिया जा रहा है वह राष्ट्रवादी कुंठाओं से उपजा लगता है |तर्क यह है की इस डॉक्यूमेंट्री को बनाने का हेतू भारत की छवि खराब करना है | सरकार का कहना है कि डॉक्यूमेंट्री के प्रदर्शन से भारत की छवि खराब होगी जिससे पर्यटन उद्योग प्रभावित होगा | मै कुछ उन लोगों में से हूँ जिन्होंने वृत्तचित्र को प्रतिबंधित होने से पहले यू ट्यूब पर देख लिया है और जितने भी ऎसे लोग है वह जानते हैं कि इस डॉक्यूमेंट्री में कुछ भी ऐसा 'एक्सक्लूसिव' नही है जो भारत को दुनिया के छितिज पर 'एक्सपोस' कर देगा |इसमें अभियुक्त मुकेश सिंह ने लड़कियों की चालढाल तथा उनके पहनावे को बलात्कार का कारण बताया है |वृत्तचित्र में अनपढ़ अभियुक्त ही नही बल्कि सुशिक्षित  वकील भी पितृसत्ता के रोग से ग्रस्त दिखे हैं |दरअसर  इसमे  कुछ नया नही है बल्कि यह बलात्कार  को लेकर एक आम धारणा  है जिसको बदलना हमारे समाज के लिए चुनौती है  |और तो और अगर भारत के चर्चित नेताओ द्वारा बताये गए  बलात्कार के कारणों का अध्ययन किया जाये तो उनके बयान भी मुकेश सिंह से ज्यादा अलग नही होंगे|यौन हिंसा केवल भारत कि समस्या नही है बल्कि पुरे विश्वसमुदाय कि समस्या है |२०१५ में संयुक्त राष्ट्र ने भी 'महिला सशक्तीकरण' का नारा दिया है |लेस्ली उडविन सामाजिक मुद्दों पर कई देशो में डॉक्यूमेंट्री बना चुकी हैं | हर देश में यौन हिंसा  को समाप्त करने , जागरूकता फैलाने  के हेतु से वृत्तचित्र बन रहे हैं लेकिन कोई देश इसे इस लिए प्रतिबंधित नही कर देता कि इससे उसकी छवि खराब होगी| इंडियास डॉटर देखने के बाद कोई भी इस निष्कर्ष पर ही पहुंचेगा कि डॉक्यूमेंट्री का उद्देश्य हमे अपनी सोच की विकलांगता  को समझ एक सकारात्मक बदलाव का अवसर पैदा करना है |अगर बलात्कार विषयक बायटों से राष्ट्र की छवि ख़राब होती है तो क्या मीडिया को बलात्कार कि खबरें  दिखानी बंद कर देनी चाहिए |? यह तर्क तो उस घटिया आंचलिक मानसिकता से प्रेरित लगता है जिसके चलते बलात्कार पीड़िता को 'घर कि बात घर में दबा देने' कि सलाह देकर चुप करा दिया जाता है |
'यौन हिंसा तथा हमारी सोच' से जुड़े कई रिपोर्ट्स और सर्वे समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओ में प्रकाशित होते रहते हैं |हाल ही में एक सर्वे के अनुसार ४४ फ़ीसदी कालेज के छात्र स्त्री- हिंसा को सहज मानते हैं |वह मानतें  है कि स्त्रिओ के पास इसके अतिरिक्त कोई चारा नही है | ५१ फ़ीसदी कालेज के छात्र (वेल एडजुकेटेड ) इस पारम्परिक सोच में विश्वास  रखते हैं कि महिलाओ को परिवार तथा बच्चो कि देखभाल करनी चाहिए तथा कॉलेज के ३६ फीसदी लड़कियां तथा ४४ फीसदी लड़के दहेज़ लेने-देने कि व्यवस्था को जायज मानते हैं | क्या ऎसे सर्वे पर सिर्फ इसलिए रोक लगा देनी चाहिए क्योकि यह आंकड़े भारत कि छवि खराब करते हैं?| दरअसर हम चाह  कर भी सच्चाई पर पर्दा नही डाल सकते | हम जानते है कि हमारे समाज में पितृ सत्ता कि जड़े काफी गहरी है इसीलिये यहां बेटियां जन्म लेने से पहले कोख में ही मार दी जाती है |१००० पुरुषो पर ९१८ महिलाओ का आंकङा भी हमारी सोच बताने के लिए पर्याप्त है | हम जिस समय में जी रहे हैं यहाँ बदलाव कि गुंजाइशें जरूर हैं पर इन गुंजाइशों को  जीवंत करने के लिए प्रतिबन्ध लगाने कि बजाय सच से रूबरू हो परिवर्तन का प्रयास करना होगा |अच्छी बात यही है कि असमानता तथ शोषण को समाप्त करने के लिए आवाज सिर्फ 'शहरी भारत' से ही नही आ रही है बल्कि वह ग्रामीण भारत भी खुलकर आगे आ रहा है जहां से निर्भया के माँ-बाप आते है | निर्भया कि माँ निर्भीकता से उस सोच को चुनौती देती हैं जिसमे बलात्कार के लिए लड़कियों को ही दोषी ठहराया जाता है | निर्भया के माता-पिता मध्यवर्गीय परिवारों के लिए एक सीख की तरह है और निर्भया स्वयं हमउम्रों के लिए एक प्रेरणा | डॉक्यूमेंट्री में बताया गया है की निर्भया कितनी नरमदिल और भावुक थी |वह गरीबों की मदद करना चाहती थी |सबकी जिंदगी में खुद के लिए सपने होते हैं पर उसके सपने अलग थे |वह अपने गाँव में अस्पताल बनाकर निशुल्क इलाज करना चाहती थी |उसे हर समस्या की जड़ में जाना पसंद था |चोरी  करने पर किसी बच्चे को पीटने की बजाय उसी चोरी करने का कारण जानने में दिलचस्पी थी| निर्भया आज हमारे बीच नही है  पर ये उसकी जिंदगी के कुछ सीख देते चंद पन्नें  हैं जिन्हे हम डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से जान पाये हैं|
दूसरा प्रश्न इस विवाद के तकनीकी पक्ष से है | आज इंटरनेट की दुनिया का विस्तार और उसकी जटिलताएं इतनी व्यापक है कि कोई भी प्रतिबन्ध मुमकिन नही हो सकता | इंडियास डॉटर को प्रतिबंधित होने से पहले हजारो लोग इसे देख चुके हैं |कई लोगों ने यू ट्यूब  से इसे  डाउनलोड भी कर लिया होगा | प्रतिबन्ध के कारण इसे देखने कि दिलचस्पी बहुत बढ़ गयी है | कई 'क्लिप्स और इमेजस' के जरिये 'इंडियास डॉटर' का सार इंटरनेट पर मौजूद है | कई लोग प्रतिबन्ध कि परवाह किये बगैर सोशल साइट्स पर इन क्लिप्स को साझा भी कर रहे हैं |प्रतिबन्ध के कारण ही यह विषय इतना प्रासंगिक हो गया है कि चारो तरफ इस पर चर्चा हो रही है | एक प्रतिष्ठित न्यूज़ चैनल ने टेलीविज़न कि दुनिया में सबसे कमाऊ समय 'प्राइम टाइम' को ताक पर रख इंडियाॅस डॉटर के पोस्टर के साथ विरोध प्रदर्धित करने के लिए सामने जलता दीपक दिखा कर एक घंटे का ब्लैक आउट किया है |
हांलाकि यह  प्रतिबन्ध अस्थाई है पर अच्छा यही होगा कि प्रतिबन्ध हटा दिया जाये | भारत पूरी दुनिया में अपने लोकतान्त्रिक स्वाभाव के लिए  जाना जाता है |प्रतिबन्ध लगाने पर उल्टा भारत कि बदनामी हो रही है |लेस्ली उडविन स्वयं कहती है कि 'भारत एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र है जो कि दरअसर एक सभ्य राष्ट्र है |हांलाकि हालिया प्रतिबन्ध इसके बारे में विपरीत राय जाहिर करते हैं जो कि लोकतंत्र के सबसे महत्वपूर्ण स्तम्भ यानी कि अभिव्यक्ति कि आजादी पर एक धब्बे कि तरह है |' सरकार को भी समझना चाहिए कि गन्दगी  कि सफाई  करने कि बजाय उस पर पर्दा डालना सच को धोखा देना है |'अँधेरे' को 'अँधेरे' से नही मिटाया जा सकता ;उसे समाप्त करने केलिए रोशनी कि जरुरत होती है ,भले ही रोशनी बहुत ही कम हो| 'इंडियास डॉटर' भी उस रोशनी कि तरह है जिसके सान्निध्य में हम खुद पर शर्मिंदा हो अपने अंदर के अँधेरे मिटा सकते हैं |
आशुतोष तिवारी


j-block-59 Govindpuram Ghaziabad-201013 

टिप्पणियाँ