निर्वाचन आयोग की
स्वतंत्रता बरकरार रखने के लिए हमारे संविधान में कई प्रावधान किये गए है |मसलन मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति
राष्ट्रपति द्वारा किये जाने की व्यवस्था
तथा पद से हटाये जाने के लिए महाभियोग जैसी जटिल प्रक्रिया का प्रावधान
निर्वाचन आयोग को निस्पक्ष तथा प्रभावशाली बनाने के लिए ही किये गए हैं |इन तमाम प्रावधानों के बावजूद हम यह दावा नही
कर सकते की हमारी चुनावी पद्धति दोषमुक्त है |इसीलिये भारत में 'चुनाव सुधार' का सवाल सामाजिक
संगठनों ,नेताओं तथा बुद्धिजीवियों
द्वारा पहली लोकसभा
से ही उठाया जा रहा है | निर्वाचन प्रणाली
की खामियों को दूर करने के लिए अब तक कई समितियों को गठन किया जा चुका है |यह समितियां समय-समय पर अपनी सिफारिशें चुनाव
आयोग के समक्ष प्रस्तुतु करती रहती है पर हर बार इन सिफारिशों पर ईमानदारी से
कार्य करना शेष रह जाता है |हाल ही में पूर्व
न्यायाधीश एपी शाह की अध्यक्षता वाली चुनावी सुधारों से सम्बंधित विधि आयोग
ने अपनी रिपोर्ट पेश की है |
इस रिपोर्ट में कई ऐसी क्रांतिकारी सिफारिशें
की गयी है जिस पर अगर ईमानदारी से अमल किया गया तो हम चुनावी सुधारों की और चंद
कदम जरूर बढ़ सकते हैं| अक्सर देखा गया
है कि कई नेता दो-दो सीटो पर आसानी से चुनाव लड़ कर जीत जाते हैं पर वह पर्याप्त
समय दोनों ही क्षेत्रों को नही दे पाते इससे उस क्षेत्र का विकास बाधित होता है |इस रिपोर्ट में एक उम्मीदवार द्वारा एक ही सीट पर चुनाव लड़ने
की सिफारिश की गयी है | चुनाव आयोग की
निष्पक्षता प्रभावित न हो इसीलिये इस रिपोर्ट में
नियुक्ति की निवर्तमान व्यवस्था कोलेजियम की ही वकालत की गयी है |अभी
तक उम्मीदवार को केवल नामांकन से लेकर नतीजे के दिन के बीच की अवधि के व्यय का ब्यौरा देना होता था
जो की किये गए व्यय से बहुत ही कम होता था क्योकि उम्मीदवार चुनाव की अधिसूचना
जारी होते ही अपना प्रचार अभियान प्रारम्भ कर देते हैं | इसीलिये चुनावी व्यय में पारदर्शिता लाने के लिए रिपोर्ट की
सिफारिश के अनुसार अब प्रत्येक उम्मीदवार को चुनाव की अधिसूचना जारी होने से लेकर
नतीजे घोषित होने के समय तक के बीच खर्च धन का पूर्ण व्योरा चुनाव आयोग
को देना होगा| रिपोर्ट में चुनावी खर्चे का व्योरा और कुल प्राप्त धन का विवरण न देने पर ३ साल की
बजाय ५ साल तक उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ठहराने का जिक्र किया गया है|इस रिपोर्ट के अंतर्गत राजनीतिक दलों की कर छूट समाप्त करने का सुझाव दिया गया है |अनिवार्य मतदान की व्यवस्था पर कई दिन से इस
देश में बहस चल रही थी|इस रिपोर्ट में
अनिवार्य मतदान की बात को कई करनी से
अत्यधिक अवांछनीय बताकर ख़ारिज कर दिया हुआ है | इन सब बेहतरीन सुझावों के बीच निर्दलीय उम्मीदवारों के
चुनाव लड़ने पर प्रतिबन्ध की सिफारिश बेतुकी लग रही है | भले ही विधि आयोग अपने तर्क में कह रहा हो की मौजूदा व्यवस्था चुनाव में निर्दलीय
उम्मीदवारों के बहुलता की इजाजत देता है जिनमे ज्यादातर मतदाता एक जैसे नाम वाले ,भ्रामक
तथा गैर संजीदा होता है | लेकिन एक तो
उपरोक्त बातें सभी निर्दलीय उम्मीदवारों पर लागू नहीं होती दूसरा यह किसी व्यक्ति
के संवैधानिक अधिकारों में हस्तक्षेप की तरह है |निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि विधि आयोग कि लगभग सिफारिशें
सकारात्मक तथा चुनावी सुधारों कि ओर एक बड़े कदम कि तरह हैं | आवश्यकता इन सिफारिशों कि मंजूरी तथा इन्हे ईमानदारी से लागू करने की
है|
आशुतोष तिवारी
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