ये शायद उसके वजूद की अंतिम रात होगी |अंतर्मन की चौखट पर नाइटमेयर का पहरा था | एक रात अपनी ज़िंदगी का दूसरा हिस्सा जी रही थी | शहर के सबसे बदबूदार नाले में उसका लगभग बेजान शरीर पड़ा था | हालांकि दूर से किसी शव का भान होता था लेकिन अभी इस जीवन में साँसे शेष थी | चारो तरफ नुकीले दांत वाली खतरनाक मछलियों का झुण्ड था | यह समुद्र की सबसे खतरनाक मछलियों का वो तबका था जो इंसानी गोश्त की शौकीन थी | अपनी मजबूरियों के चलते पलायित हुई ये मछलियाँ शहर के इस नाले में आ फंसी थी | रह रह कर ,जैसे ही ये मछलिया उसके शरीर के किसी टुकड़े को चबाती उस चिथङे से चीख निकल जाती | लाचार आदमी चीखने के सिवाय और कर भी क्या सकता है |माहौल में अजीब सी भयानकता छायी थी | चीख ,आह, और पीड़ा का मिलाजुला संगीत गूँज रहा था |मन की कुंठाएं इस डरावने संगीत पर आइटम सांग कर रही थी | शहर की ये इंसानी गोश्त खाने वाली मछलिया रहम क्यों नही करती | वासना और शराब के बीच कोई पुख्ता गठबंधन हुआ था | दोनों एक दूसरे में ग़ुम 'लगभग जीवित शरीर को लाश में बदलता देख रहे थे |वह मर ही जायेगा |ये शायद उसके वजूद की अंतिम रात होगी |मन की दुनिया तमाम रहस्यों से भरी है | कुंठाएं हमारी परवरिश की नाजायज बेटिया हैं |
रात का दूसरा पहर एक और दृश्य लेकर हाजिर था |उस हिस्से में कोई खत था | शायद किसी अपने से शिकायत थी |
दुनियावी आदर्शों के मरघट पर वह ओंधे मुहं पड़ा है | नेपथ्य में शिकायतों और सवालों का तांडव चल रहा है |......."मुझे इतनी खूबसूरती से जीवन के सलीके क्यों सिखाये ???..जीना जब स्वयं में तकलीफदेह है तो फिर ये सलीके क्यों ??.अनवरत अतृप्तता से तुम भी तो परिचित रही होगी ??मेरी आँखों में आँखे दाल कर कह सकती हो की मेरे होने में तुम्हारा सौंदर्य निर्दोष है ??सौंदर्य की विभीषिकाओं का शिकार हुआ हू मै!!तुम्हे पता है !..अपने अस्तित्व की समीक्षा के अंतिम छोर पर हर बार तुम्हे पाना और फिर तडप जाना क्या होता है ??सौंदर्य_प्रेम _आदर्श _महानता ...ये सब वो कच्चा माल है जिसे जुटाकर तुमने सो कॉल्ड महान पैदा किया है |जानती हो !!..मेरे अनुभवों ने मुझे क्या सिखाया है ..कि...महानता एक अभिशाप है और तुम उस अभिशाप की देवी" ,,,,,एक और आवाज उस मांस के लोंदे से आती है |......वासना _अहंकार और भटकन ...ये यूं ही नही है |आधुनिक आत्मा का रुझान ही कुछ ऐसा है |......हवा में शोर मचाती सूनेपन कि आवाज ....
(फेसबुक फिक्शन )
रात का दूसरा पहर एक और दृश्य लेकर हाजिर था |उस हिस्से में कोई खत था | शायद किसी अपने से शिकायत थी |
दुनियावी आदर्शों के मरघट पर वह ओंधे मुहं पड़ा है | नेपथ्य में शिकायतों और सवालों का तांडव चल रहा है |......."मुझे इतनी खूबसूरती से जीवन के सलीके क्यों सिखाये ???..जीना जब स्वयं में तकलीफदेह है तो फिर ये सलीके क्यों ??.अनवरत अतृप्तता से तुम भी तो परिचित रही होगी ??मेरी आँखों में आँखे दाल कर कह सकती हो की मेरे होने में तुम्हारा सौंदर्य निर्दोष है ??सौंदर्य की विभीषिकाओं का शिकार हुआ हू मै!!तुम्हे पता है !..अपने अस्तित्व की समीक्षा के अंतिम छोर पर हर बार तुम्हे पाना और फिर तडप जाना क्या होता है ??सौंदर्य_प्रेम _आदर्श _महानता ...ये सब वो कच्चा माल है जिसे जुटाकर तुमने सो कॉल्ड महान पैदा किया है |जानती हो !!..मेरे अनुभवों ने मुझे क्या सिखाया है ..कि...महानता एक अभिशाप है और तुम उस अभिशाप की देवी" ,,,,,एक और आवाज उस मांस के लोंदे से आती है |......वासना _अहंकार और भटकन ...ये यूं ही नही है |आधुनिक आत्मा का रुझान ही कुछ ऐसा है |......हवा में शोर मचाती सूनेपन कि आवाज ....
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