सुनो दोस्त !!!.... हमारी - तुम्हारी दोस्ती भी बिलकुल 'ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा' जैसी थी |

प्यारे दोस्त  ,
तुम्हे यह खत लिखते हुए बड़ा मज़ा आ  रहा है | कोई भी इमोजी इस मज़े को बया नहीं कर सकती इसलिए उन्हें  चेपने की बजाय   'लिखलोली'  को प्रिफर कर रहा  हूँ |मुझे भरोसा है  कि 'लिखलोली' का मतलब तुम जैसा 'बकलोल' जरूर समझता होगा |जो नहीं जानते उन्हें बता दू कि 'लिखलोली', बकलोली के पेट से निकला है जिसकी पैदाइश  का श्रेय कई लोग मुझे देते  है |खैर विषय से भटकाते हुए बीच में ही यह बता दूँ कि यह खत लल्लनटॉप की तरह लोँडेपन से भरपूर   होगा |पढ़कर खींसे मत निपोर देना | वैसे तुम्हारे दिमाग पर मेको थोड़ा भरोसा है | मेरे हजारो घटिया जोंक सुनकर भी तुम्हे आज तक दिमागी पेचिश जैसी कोई शिकायत नहीं हुई |

दोस्त ! जब मगध एक्सप्रेस  पहली बार तुम्हे बिहार से यहाँ ले आई ;तुम बिलकुल बिहार जितने प्यारे थे  | पांव जमीन पर थे और आँखे आसमान पर |फोन पर स्टाइल से 'हेलो!!!' कहते थे लेकिन बोतल के ढक्कन को 'ठेपी' | जब तुमने पहली बार मेरे सामने बच्चे को 'बुतरू ' कहा, यकीन मानो !मुझे इस खत को लिखने से ज्यादा मज़ा तब आया  था | मेरे साथ बैठकर सात -आठ बार   बैटमैन झेलने की पीड़ा  मैं समझ सकता हूँ | जो बच्चा 'कृषि -दर्शन' देखकर बड़ा हुआ उसे एकाएक 'बैटमैन' दिखा देना मानसिक अत्याचार नहीं तो क्या है |
हमारी - तुम्हारी दोस्ती भी बिलकुल 'ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा' जैसी  थी | अच्छे और बुरे की सीमा से बेखबर एकदम बिंदास और विचित्र |पढ़ाई मैं नहीं करता था और फेल तुम हो जाते थे | सिगरेट मैं  पीता था ,धुंआ तुम्हारी नाक से निकलता था |पेट मेरा खराब होता था और घंटो लूज  मोशन तुम्हे होते थे  |और तो और ,पोर्न मैं देखता था और हालत तुम्हारी खराब होती थी | दोस्ती की हद  तो तब हो  जाती थी जब फोन तुम्हारी गर्लफ्रेंड का आता था और लपक मैं लिया करता था |मैं बात किया करता था और तुम श्रद्धा भरी निगाहो से मुझे देखा करते थे |इसे पड़कर ज्यादा हंसो मत |बकैती का  अधिकार  सिर्फ हमारे देश के टीवी एंकरों के पास ही नहीं है |
सुना है दोस्त आजकल तुम दुनिया का सबसे मुश्किल काम कर रहे हो | इश्क पर कविता लिख रहे हो |अच्छा है लिखो पर सावधानी से ,अगर तुम्हारी आरध्या तुम्हारी खुद की प्रेमिका है |तुम्हारी बाते उसे लेकर प्रेमियों जैसी कम भाईओं जैसी ज्यादा रही हैं | इस भावनात्मक घोटाले का असर लेखन पर  नहीं होना चाहिए | तुम मुस्कुराते हुए कहते थे कि मैं तुम्हारी ब्लॉग पर एक ब्लॉग लिखूंगा  |मैने तुम्हारी उस मुस्कान से इजाजत लेकर   एक ब्लॉग लिख दिया है |मुझे पता है किसी रोज मेरी तमाम बकैतीयों का गुस्सा तुम  लिख कर  निकालोगे | ये सब लिखकर तुम्हारी लिखलोली झेलने कि जमीन तैयार  कर रहा हूँ |समय मिले तो तुम्हारी उन दोस्तों को (जो मेरे दोस्त बनने की प्रक्रिया में है ) यह खत जरूर पढ़वाना | इसके दो फायदे है | मुझे एक मुफ्त का 'जी- मेल' मिलेगा और तुम्हारी धांसू ब्रांडिंग होगी |(मुफ्त का जी मेल मैं और मेरा दोस्त उन लोगो के लिए इस्तेमाल करते है ,जो अपरिचित लोग हमारे ब्लॉग के फॉलोवर बन जाते हैं )

लेकिन दोस्त !!  फाइनली तुम एक अच्छे इंसान हो | रिश्ते निभाने के मामले में बिलकुल पुरानी फिल्मों के किरदारों जैसे | 'दोस्त में आंच आ गई तो अाँख निकाल लूंगा' टाइप | तुम्हारी साथ से पहले मैं बहुत सिमटा हुआ लौंडा था |सामूहिक बकलोली का आनंद  तुम्हारे साथ ने सिखाया है | दोस्ती पर टिकी हुई तमाम फिल्में देख पाने के बावजूद भी नहीं पता था कि वो क्या होती है ?| तुम्हारे   साथ रहकर इस शब्द का एहसास किया है |उम्मीद है तुमने भी किया होगा | तमाम गलतियों को माफ़ कर देना |यूु ही मासूम रहना और उसी स्टाइल से फोन पर 'हेलो!!!! ' बोलते रहना |

तुम्हारा दोस्त
(यह ब्लॉग  'माय लेटर'  वेब पोर्टल पर पब्लिश हो चूका है | लिंक - http://www.myletter.in/2016/04/letter-to-my-best-friend-remembering-sweet-memories.html)

आशुतोष तिवारी
(भारतीय जन संचार संस्थान )

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