अर्थव्यवस्था का ‘क्रांतिदूत’
बताया जाने वाला वस्तु एवं सेवा कर सम्बंधित बिल संसदीय मेल –जोल से लगभग पास हो
गया है | प्रख्यात अर्थशास्त्रियों ने इसे ‘भारतीय अर्थव्यवस्था का नया सवेरा’
बताया है | खुले बाजार के खिलाफ वैचारिक रूप में हमेशा से लामबंद रही शक्तियों ने भी
इस बिल का स्वागत किया है जिसके अंतर्गत यह दावा किया गया है की यह भारत को एक सीमारहित विस्तृत बाजार में बदल देगा | लेखों में इस
बदलाव को कारोबारी लिहाज से बेहतर और जीडीपी बढोत्तरी के अनुकूल बताया गया है | प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने तो अपने एक हालिया भाषण
में यहाँ तक दावा किया है कि यह बिल ‘कंज्यूमर को किंग’ बना देगा | कुछ
लोगों ने इस बात को भाषण का अतिरेक कहा है | खैर !!तो क्या यह बहु प्रचारित बिल
उपभोक्ता के हित में लाया जा रहा है या बेहतर ‘कारोबारी माहौल’ कारोबार करने वालो
के लिए बनाया जा रहा है | हालंकि इस बिल
की कई सकारात्मक बाते पहले से ही प्रचारित की जा चुकी है ( जैसे की दोहरे कराधान
से मुक्ति , प्रतिस्पर्धी माहौल आदि ) लेकिन इस बिल चुनोतियाँ भी कम नही हैं |
दावा किया गया है की
यह बिल लागू होने के बाद बनी हुयी (विनिर्मित ) वस्तुओं पर उस स्थान पर कर लगेगा जहाँ इनका उपभोग किया जायेगा | मतलब कि यदि कोई
वस्तु बिहार में बनायी जाती है और उसका
प्रयोग दिल्ली के लक्ष्मीनगर में होता है तो अब कर का संग्रह लक्ष्मीनगर में होगा
|अतः जिन जगहों पर उपभोग की दर जितनी ज्यादा होगी कर का संकलन भी वहां उतना ही ज्यादा
होगा | चूंकि संपन्न राज्यों में पहले से ऐसे महानगर हैं जिनकी उपभोग दर बहुत
ज्यादा है | दिन पर दिन इन महानगरों में उपभोग आकान्छी मध्यवर्ग भी बढ़ता जा रहा है
और गाँवों से इन बड़े शहरों की ओर पलायन भी तेजी से हो रहा है | इससे क्या संपन्न
राज्यों और पिछड़े राज्यों के बीच का आर्थिक अंतर और अधिक नही बढ़ जायेगा ? क्या इस संभावना पर गौर नही करना चाहिया था ?
क्या इस सवाल का समुचित जवाब अब तक मिल सका है |
प्रधानमंत्री ने इस
बिल से उपभोक्ता का फायदा होने का दावा
किया है | हम सभी जानते हैं की महंगाई कम होना ही आजकल उपभोक्ता के लिए सबसे बड़ा
फायदा है | तो क्या ये महंगाई कम करने वाला बिल है ? गौरतलब है की जीएसटी की दरें 18 फीसदी
करने का सुझाव है | अर्थात 1 अप्रैल 2017 को इस बिल के लागू होने के बाद टेलिकॉम , रेस्टोरेंट ,रेलवे और बस यात्रा ,
मनोरंजन इत्यादि जरूरी सेवाओं के लिए उपभोक्ताओं को ज्यादा पैसे चुकाने होंगे
|सेवा कर जो पहले ही दो -तीन सालों में 12.5 % से लेकर 15 % तक
बढ़ चुका है ,वह इस बिल के लागू होने के बाद बढ़कर 18-19 फीसदी
होने वाला है |ऐसे में तमाम सेवाओं पर कर की जो बेशुमार मार पड़ेगी उससे उनकी मांग
बढेगी या कम होगी ?? ऐसे में रोजगार बढ़ेंगे या कम होंगे ?? इन सवालों से दो- चार
हुए बिना क्या इसे उपभोक्ता के लिए लाभकारी कहा जा सकता है |
GST से जुड़े विमर्श
के अंतर्गत शुरुआत से ही इस बिल के समर्थन में जो तर्क सबसे ज्यादा दिया जा रहा है
वो ये है की यह हमारी जीडीपी को दो अंकीय
कर देगा | सुनने में यह बात अच्छी लगती है और जीडीपी को दो अंकों में देखना भी
आँखों को सुकून देने वाला होगा लेकिन क्या सचमुच कोई जमीनी बदलाव होने जा रहा है
|अभी असंगठित क्षेत्र देश के 86 फीसदी लोगों को
रोजगार देता है और उसका जीडीपी में योगदान लगभग 50 फीसदी है | जीएसटी लागू होने के
बाद भी यह क्षेत्र भी टैक्स के दायरे में आ जायेगा |यही वजह है की जीडीपी में दो
फीसदी की वृद्धि की उम्मीद की जा रही है | लेकिन यह बढ़ोत्तरी सिर्फ सरकारी आंकड़ो
में होने जा रही है क्योकि इससे न तो जमीनी
पर उत्पादन में कोई बदलाव आ रहा है और न ही उपभोग पर | इस बड़े आंकणों के
बावजूद भी अर्थव्यवस्था का स्वास्थ्य तो वैसा का वैसा ही रहेगा |यह ठीक उसी
तरह होगा जिस तरह इसी सरकार ने पिछले साल जीडीपी निकालने के तरीके में बदलाव कर
वर्द्धि दर दो फीसदी बढ़ा दी थी |
एक बड़ा सवाल संघवाद
से सम्बंधित है | ‘एक देश एक कर’ के भावुक नारे के बीच क्या हम संघवाद के
लोकतांत्रिक सिद्धांतो को साइड में रख रहे हैं |? याद होगा कि नरेंद्र मोदी नीत गुजरात ही
कांग्रेस कालीन अपारित जीएसटी का सबसे
मुखर विरोधी बनकर उभरा था | अभी भी यह समस्या है की इससे राज्यों को होने वाली
आर्थिक हानि और उससे समबन्धित मुआवजा तय करने वाले मानक अभी स्पष्ट नही है |
भविष्य में इस विषय तकरार की पूरी आशंका है | अकादमिक जगत में उठने वाला सबसे
गंभीर सवाल भी ये है की यह राज्यों की कर सम्बन्धी स्वायतत्ता को समाप्त कर संघवाद
को कमजोर करेगा | बेहतर होगा इसे लागू करने तक की पुरी प्रक्रिया में राज्यों की
चिंताओं का ख्याल रखा जाये |
इस वकत
दुनिया के करीब 150 देशों में GST लागू है | | लेकिन अधिकतर देशों
के शुरुआती अनुभव अछे नही रहे हैं | अनुभव बताते है की GST लागू होते देशों में
महंगाई बड़ी है और इसे लागू करने वाली सरकारे गिरी है |अगर बेहतर पूंजीवादी माहौल
बनाने की जरूरी GST गस्त है तो पूंजीवाद के आइकॉन अमेरिका में यह लागू क्यों नही
है | हर देश में गस्त दर भिन्न भिन्न है |
तमाम सवालों के जवाब इस बात पर भी तय करेंगे
की सरकार GST दर को कितना रखती है |बेहतर होगा यदि सरकार दरें
न्यूनतम रखे क्युकी महंगाई दमकती हुयी सरकारों की आभा भी कमजोर कर सकती है |
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आशुतोष तिवारी
भारतीय जन संचार
संस्थान ( यह लेख राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित हो चुका है | लिंक - http://www.rashtriyasahara.com/epapermain.aspx?queryed=10
(यह लेख लेख पोर्टल 'खबर की खबर ' पर प्रकाशित हो चूका है | लिंक - http://khabarkikhabar.com/archives/2787 )
दैनिक जागरण के सम्पादकीय पेज , ब्लॉग कॉलम में - ( http://epaper.jagran.com/ePaperArticle/14-aug-2016-edition-Delhi-City-page_14-2525-773-4.html )
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