राजनीतिक दल वार रूम क्यूँ बनाते हैं !!



विचारों की आजादी के सवाल ट्रोल होने और आसानी से पचा लिए जाने के बीच सामान्य होते जा रहे हैं | जवाब किसी के पास नहीं है लेकिन सवाल से बचने का हल हर राजनीतिक दल के  पास है | जिनके सामने हम सवाल कर रहे हैं वो या तो सवालों को सुनकर उदासीनता से मुह फेर रहे हैं या फिर सोशल मीडिया के पिछले रास्ते से सवाल करने वालों को ट्रोल करवा रहे है | अक्सर मुख्य धारा के माध्यमों से मुहं फेर लेने वाले लोग जवाब देने के लिए सोशल मीडिया पर आ रहे हैं –जैसे गाँव की लड़ाइयों मे बोला जाता है की मेरी गली को आओगे तो देख लेंगे | उनकी सुविधा यह है की हर वक्त सोशल मीडिया पर उनके साथ एक भीड़ रहती है जो तीखे सवालों का तिनका –तिनका कर देने के लिए हर तरीके अपनाना जानती हैं | बड़े पत्रकारों की माने तो यह एक प्रशिछित डिजिटल गिरोह हैं जिन्हें राजनेता पैसे देकर पोषित कर रहे हैं |

बिहार के एक कांग्रेसी नेता ने विरोध प्रदर्शित करने के लिए प्रधानमंत्री की तस्वीर पर जूते चलवा दिए | दिल्ली विश्वविद्यालय की गुलमेहर  कौर को सोशल मिडिया पर बलात्कार कर देने तक की धमकियाँ मिली | पाकिस्तान भेज दिए जाने के फरमान हमारी राजनीति में अब तो पुराने हो गये हैं | असहमति की यह भाषा कहाँ से आ रही है ? आदिम सभ्यता की असहमति के तरीके 'आदमी' के विरोध की भाषा कब से हो गयी ?? यह प्रतिरोध के नंगे तरीकों का समय है और तभी तो यह जरूरी था की हम दिल्ली विश्विद्यालय के उस सेमीनार को सुनते जिसमे प्रतिरोध की संस्कृति और उसके असहमति दिखाने के रचनात्मक तरीकों के बारे में विस्तृत बात की जानी थी | हालंकि उसे होने से पहले एक बवाल में बदल दिया गया और हमने फिर असहमति के वही छिछले तरीके देखे जिनसे गुजरकर हर आदमी ‘कम आदमी’ हो जाता है |
 

सवाल भाजपा या कांग्रेस का नहीं है | सवाल है असली सवालों को गायब कर दिए जाने का | ट्रोलिंग
कोई नया विषय नहीं है पर आज हर बहस में यह एक प्रेत बन कर आ गया है | डिजिटल दुनिया का यह प्रेत  इतना प्रभावी हो गया है की हाल फिलहाल की सारी बहसों  की दिशा बदलने तक में कामयाब रहा है | सवाल करने वाले को गैरजरूरी सवालों के एक ऐसे तिलिस्म में फंसा दिया जाता  है की वह स्वयं उन सवालों पर बात करना शुरू कर देता  है जिसका उसके सवाल से कोई लेना देना नहीं है | ‘पहले एक सवाल को हल होने दो’ – कहने वालों को ‘पहले इस सवाल का जवाब दो ‘ कहकर हल्का कर दिया जाता है | ऐसे ही न जाने कितनी बुनियादी जरूरतों से जुडी बहसों को ‘तुम्हारी सरकार’ बनाम ‘हमारी सरकार’ कहकर हवा कर दिया गया | सामजिक सौहार्द से जुड़े न जाने कितने सवाल 1984 बनाम 2002 होकर रह गये |


 उदाहरण देखिये | किस तरह से असली सवाल गायब कर दिए जाते हैं | राम जस कालेज में एक शर्मनाक घटना हुई | जांच (जाँच तो हो ही रही है | ) से ज्यादा ‘बात’ का विषय यह होना चाहिए  की वह कौन से लोग थे जो इस तरह घुस कर  मार पीट करने के हिम्मत कर सके | ? मार पीट करना पढने –लिखने वाले लोगों का विरोध का तरीका कब से हो गया ? जिस सेमीनार के विरोध में कुछ उपद्रवी आये थे , क्या वो सब मिलकर उस सेमीनार के विरोध में कोई सेमीनार नहीं कर सकते थे ?  पत्थर किसने चलाये ? पुलिस की भूमिका क्या थी ? | पर आप सोशल मीडिया पर देखिये | बहस किस बात पर हो रही है ? – वामपंथ और दक्षिणपंथ की पुरानी लड़ाइयों पर | इतिहास खोदा जा रहा है | चीन, रूस , फिलस्तीन पाकिस्तान सब कुछ आ गया है | लड़ाई ठेल दी गयी है – वाम और दक्षिण की अंतहीन बहस की तरफ  | यह हमारे समय की सबसे बड़ी चिंता है | हर मुद्दे के साथ यही किया जा रहा है | बिहार के कांग्रेस नेता  ब्रजेश पाण्डेय पर एक आरोप लगा है |उसकी जांच का काम वह लोग करेंगे जिन्हें उसकी जांच का जिम्मा है | अगर किसी  कुछ सहायता ही करनी है उस  लडकी की – तो तथ्य और सबूत जमा करवाने में मदद की जा सकती है ताकि अगर आरोप सही है तो  ब्रजेश पाण्डेय को जेल भिजवाया जा सके  | जुर्म साबित हो जाये तो  कांग्रेस पार्टी को भी कोस सकते हैं की उसने कैसे नेता रख रखे है | पर इन सब की बजाय हो क्या रहा है ? – रवीश कुमार को ट्रोल किया जा रहा है | वामपंथ को गालियाँ दी जा रही है | रवीश कुमार की पत्रकारिता पर सवाल किया जा रहा है | मैं जानना चाहता हूँ – यह सोशल मीडिया जनतंत्र को मजबूत करने की उम्मीद जगाता था  और हम आज इसके जरिये कैसे अपने लोकतंत्र को मजबूत कर रहे हैं |



 अखबार बड़ी तवज्जो  से लिखते है की फला पार्टी ने अपना वाररूम तैयार कर लिया है | कोई बताएगा इन वार रूम्स में क्या होता है ?  यहाँ पर रोजगार के नाम पर कुछ युवकों को बैठाल दिया गया है जो अपने- अपने  तरीकों से आन लाइन प्लेटफ़ार्म पर  सिर्फ हो - हल्ला मचा रहे हैं | हल्ला शब्द जानबूझ कर लिखा है क्युकी किसी भी दल के वार रूम को  जनता के  सवालों में कोई दिलचस्पी नहीं है | असली इरादा विरोधी को नीचा दुखाने का है | विरोधी दल को उससे पहले चोर साबित कर देने का है | कभी आपने  देखा है की फेसबुक पर किसी ख़ास दल का ऑनलाइन प्रचार करने वाले लोग उस लिंक के साथ सामने आये हो जिसे खोलने पर आपको यह पता चले की आपके नेता आपके लिए रोजगार पैदा करने के लिए कौन से तरीके सोच रहे हैं | यह सब नहीं मिलेगा | नेता की निजी जीवन की वाहियात कहानियों के लिंक भरे पड़े है | कोई बताएगा की इन सब सूचनाओं का जनता के सरोकारों से  क्या वास्ता  है | राजनीति शास्त्र की किताब में पढ़ा था की राजनितिक दल लोकतंत्र को समर्द्ध कर रहे हैं | मैं जानना चाहता हूँ की एक वार रूम बनाकर – जिसके इरादा तिकड़म भिडाकर जीतना रह जाता है – किस तरह लोकतंत्र मजबूत हो रहा है |



ट्विटर के ट्रेंड पर तो बिलकुल मत जाइये | यह करना उतना ही आसान हो गया है जितना किसी को ट्रोल करना | ट्रेंडिंग के आकडे जनमत नहीं हैं | अगर कोई उन्हें जनमत समझता है तो उसे उस हैंडिल को इस्तेमाल कर रहे लोगों के बारे में जानना चाहिए | थोडा सा रिसर्च करेंगे तो जानेंगे की यह सब एक ही तरह के लोग है जो खाली समय को भरने के लिए या सचमुच किसी ख़ास दल के प्रचार/ विचार  से प्रेरित होकर पेड /नॉन पेड वालेंटियर हो गये हैं | असली सवाल गायब हैं | उन्हें जानबूझ कर बहस से गायब किया जा रहा  है | दो लोगों की बीच आपस की लड़ाई विचारधारा की लड़ाई कब से हो गयी ? लेकिन आपसी लड़ाई के जरूरी सवालों को भटकाया जा सके –इसलिए यह जरूरी हो गया है की ट्रोल कराया जाए / विधिवत वार रूम बनाया जाये |

आशुतोष तिवारी 
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