उत्तर प्रदेश के चुनाव में नया क्या है ?




उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का आखिरी दौर चल रहा है | आशंकाएं बननी शुरू हो गयी हैं की फला पार्टी को बहुमत मिल सकता है या फला पार्टी की इतनी सीटें आ सकती हैं | पैरोकारों  ने अपने अनुमानों को दलीलों के सहारे स्थापित करना शुरू कर दिया है | 11 मार्च को आने वाला चुनाव परिणाम उन सभी आशंकाओं और संभावनाओं पर सही या गलत की मोहर लगा देगा जिनका अधिकतम प्रचार कभी – कभी जनमत को भी प्रभावित करने में कामयाब हो जाता है | शायद इसीलिए एग्जिट पोल पर चुनाव के दौरान रोक लगाई गयी है | चुनाव स्वयं बदलाव नहीं है बल्कि नेत्रत्व बदलने की एक आम प्रक्रिया  है जो की हर  पांच साल में दोहराई जाती हैं | इसीलिए यह ध्यान देना जरूरी हो जाता है की इस बार यूपी चुनाव में हमने क्या नया बदलाव हासिल किया है |

मेरा विषय यह है कि उत्तर प्रदेश ने  चुनावी अभियान के तरीकों में किस तरह के बदलाव देखे हैं | जाती ,धर्म के नाम पर लुभाने के पुराने तरीकों (जो की अब भी जारी हैं ) को छोड़ दिया जाए तो नया क्या था ? दरअसर जिस तरह से प्रदेश की जनता की शैक्षिक दर बढ़ी है और जनसंचार माध्यमों की पहुँच आम लोगों तक हुयी है , मतदाता का मिजाज भी तेजी से बदल रहा है | राजनीतिक पार्टियाँ भी इस सच को समझ रही हैं | इसीलिए राजनीतिक दल उन सभी प्लेटफार्मो की तलाश कर रहे हैं जहां से वह शिक्षित जनता और ख़ास तौर से युवाओं तक अपनी बात पहुंचा सके | यही कारण है की पहली बार उत्तर प्रदेश में फेसबुक और व्हाट्स एप के जरिये सभी राजनीतिक दलों ने डिजिटल अभियान चलाये है | एक और जहाँ कांग्रेस- सपा गठबंधन ‘यूपी को ये साथ पसंद है ‘  अभियान और भाजपा फेसबुक पर ‘उत्तर देगा उत्तर प्रदेश’  अभियान तेजी से चला रही है वहीं आम तौर पर मीडिया से दूरी बनाकर रखने वाली पार्टी बसपा भी व्हाट्स पर और फेसबुक के जरिये ‘बहन जी को आने दो |’ नाम से एक डिजिटल अभियान चलाकर इस स्पेस में  शामिल हो गयी  है  



उत्तर प्रदेश के चुनाव में एक बात और नयी है | यहाँ पहली बार राजनीतिक दलों ने चुनाव प्रबन्धन परोक्ष या अपरोक्ष रूप से किसी संस्था को सौंपा है | कांग्रेस के लिए यह काम अगर प्रशांत किशोर की कम्पनी आई पैक (इंडियन पोलिटिकल एक्शन कमिटी )  ने किया है तो भाजपा के लिए एबीएम् (एसोसियेशन ऑफ़ ब्रिलियंट माइंड ) ने | सपा और बसपा ने भी अपने अपने स्तर पर वार रूम स्थापित किये हैं | इस तरह के राजनीतिक दलों के अत्याधुनिक वार रूम और डिजिटल अभियानों को उत्तरप्रदेश की जनता पहली बार देख रही है | मेरा विचार है की हमे इस चुनाव में अभियान के इन नए रूपों- संगठित चुनाव प्रबन्धन और डिजिटल अभियान - को भी चुनाव परिणामों की तरह याद रखना चाहिए |
(ब्लॉग की बजाय यह त्वरित टिप्पड़ी है | यह टिप्पड़ी  राष्ट्रीय  सहारा के चुनावी कवरेज के विशेष पेज में पब्लिश हो चुकी  है | )

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