प्लेटो दुनिया में औरतों का भी बराबर बंटवारा चाहता था |


‘जब तक दार्शनिक शासक नहीं बन जाते या शाषक दार्शनिकों में नहीं बदल जाते तब तक दुनिया से बुराइयां मिटना सम्भव नहीं है |’ यह यूनानी दार्शनिक प्लेटो का मानना था | प्लेटो राजनीति के  दर्शन की दुनिया के गॉडफादर  हैं – दुनिया के पहले दार्शनिक | एक ऐसा चिंतक  जिसका मानना था कि साम्यवाद सिर्फ संपत्ति का ही नहीं पत्नियों का भी होना चाहिए | हालंकि उनके इस सिद्धांत की सबसे मारू आलोचना उनके चेले अरस्तु ने ही की है | जानिये प्लेटो के उन पांच  सिद्धांतो के बारे में जिनकी चर्चा सिर्फ दर्शनशास्त्र  पढने वालों के बीच सिमट कर रह जाती  है |


1 – ‘न्याय’ पर प्लेटो के विचार -  

प्लेटो की एक किताब है - ‘रिपब्लिक’ | इस  किताब के जरिये प्लेटो ने  न्याय से जुडी बहस में अपने विचार रखे हैं |  प्लेटो का मानना था कि अपनी जगह के कामों को अपनी योग्यता अनुसार करना तथा दूसरे के कामों में उंगली  नहीं करना ही न्याय है | उन्होंने न्याय की परम्परावादी सोच और थ्रेसिमेकस की उग्रवादी सोच दोनों को नकार कर न्याय का अपना सिद्धांत दिया | उनके अनुसार हर आदमी में तीन गुड़ प्राकृतिक रूप से होते हैं – ज्ञान ,साहस और तृष्णा | राज्य व्यक्ति का ही बड़ा हुआ रूप तो है तो राज्य को भी यह तीनो बातें स्वीकार करनी चाहिए |जिसके पास ज्ञान है वो शासन का काम करे , जिसके पास साहस है वो रक्षा  का काम करे और तृष्णायुक्त वर्ग उत्पादक का काम करे | इस तरह तीनो का समन्वय राज्य को आदर्श रूप प्रदान करेगा |


 2 - प्लेटो की शिक्षा व्यवस्था –

प्लेटो की शिक्षा व्यवस्था की कल्पना आज से काफी अलग थी | वह समाज के सभी वर्गो के लिए शिक्षा का  अरेंजमेंट नहीं करता | उसका मानना था कि सिर्फ शासक वर्ग और सैनिक वर्ग को ही शिक्षा मिलनी चाहिए और उत्पादक वर्ग को इससे दूर रखना चाहिए | सैनिक वर्ग भी सिर्फ 30 साल तक पढ़ लिख सकता है | केवल शासक वर्ग को पचास साल तक पढने की आजादी होनी चाहिए | हालंकि प्लेटो शिक्षा में जेंडर डिस्क्रिमिनेशन नहीं करता | वह मेल और फीमेल दोनों की बराबर शिक्षा की पैरवी करता है |




3 – संपत्ति का साम्यवाद - 

आदर्श राज्य की व्याख्या करते हुए प्लेटो कहता है कि – शासकों के पास केवल उतनी ही सम्पत्ति होगी जितनी जीवन बिताने के लिए जरूरी है |इसके अलावा आज के नेताओं की तरह न ही कोई अपना मकान होगा और न ही ख़ास सुविधाएँ | वह आम भोजनालयों में भोजन करेंगे और फौजियीं की तरह डेरों में रहेंगे | वह सोना – चांदी भी नहीं छू सकेंगे | हालांकि  प्लेटो का साम्यवाद सिर्फ सभी वर्गों के लिए नहीं है और न ही इसका आधार आज की तरह आर्थिक है | बस प्लेटो का साम्यवाद अंतत सरक्षक वर्ग को धन के आकर्षण से मुक्त करते हुए लोक कल्याण में लगे रहने की बात कहता है |


4- पत्नियों का साम्यवाद –

प्लेटो के इस सिद्धांत की तीखी आलोचना हुयी है | हालंकि प्लेटो ने पत्नियों की साम्यवादी व्यवस्था की मुख्य रूप से तीन वजहें बतायी थी | पहली यह कि ओरतें अपना निजी परिवार बनाने के बाद घर – गृहस्थी के बन्धनों में पड़ जाती हैं | शासक वर्ग भी पारिवारिक मोह में अँधा हो जाता है | इससे भाई भतीजा वाद बढ़ता है | जब सरक्षक वर्ग अपनी निजी परिवार नहीं बसाएगा और जब स्त्रियाँ सबकी सामान रूप से पत्नियाँ होंगी तब उनके  बच्चे  भी सामान रूप से सबके बच्चे होंगे  | न तो बच्चा  अपने माता –पिता को जान पायेगी और न ही माता –पिता बच्चे को  को | इस तरह राजनीति से भाई – भतीजावाद और परिवारवाद ख़तम हो जायेगा | दूसरा यदि औरतें  परिवार के बंधन से आजाद रहेंगी तो पुरुषों के साथ आदर्श राज्य चलाने में सहयोग देंगी | तीसरा अस्थाई विवाह प्रणाली से उत्तम संतान पैदा होगी | प्लेटो के इस सिद्धांत की तीखी आलोचना हुयी | कहा गया कि राज्य कभी परिवार का रूप धारण नहीं कर सकता और इस व्यवस्था से यौन विकृतियाँ भी पैदा होंगी |



5- प्लेटो का दार्शनिक राजा और आदर्श राज्य  –

प्लेटो का दार्शनिक राजा वन मैन आर्मी है | स्मार्ट , नालेजबल और निर्मोही |एकांत में रहने वाला , दारशनिक , चिन्तक | न्याय प्रिय , नीति परायण और सौन्दर्यवान |  प्लेटो का मानना था कि जहाँ राजा सद्गुणी होता है वहां कानून की जरूरत नहीं है | हालंकि लोकतंत्र के समर्थकों द्वारा प्लेटो के दार्शनिक राजा की जमकर गिल्लियां उडाई गयीं | प्लेटो का आदर्श राज्य भी एक ऐसे राज्य की कल्पना है जिसमे बुराई और भ्रष्टाचार न हो | आदर्श राज्य सद्गुणों और अच्छाई प्रतिमूर्ति है |यह राज्य न्याय की स्थापना करेगा , ज्ञान का शासन  होगा क्युकी राजा दार्शनिक होगा | शिक्षा , कला और साहित्य  पर राज्य का नियन्त्रण रहेगा  | औरतों  और पुरुषों से सामान व्यवहार होगा | हालंकि प्लेटो के आदर्श राज्य को गैर व्यवहारिक  कल्पित राज्य कहकर काफी आलोचना की गयी |



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