प्यार , ज़िंदगी और आलपिन


उससे बात करना प्रेम की एक आलपिन को अपनी ज़िंदगी की क़मीज़ पर लगा लेने जैसा है । दर्द तो बचा रह जाता है पर ज़िंदगी की क़मीज़ दूरस्त रहती है । देह की क़मीज़ आत्मा के बदन पर प्रेम के आलपिन के ज़रिए ही टंकी हुई है । जिस रोज़ आलपिन हटी , ज़िंदगी की क़मीज़ मौत की पतलून पकड़ लेगी । 

 दर्द से शिकवा नहीं है ।न आदमी को होना चाहिए । क्या आपने कभी अपने कपड़ों पर आलपिन लगाई है ? हर आलपिन को लगाते हुए हल्का दर्द होता है ।हांथ की नसें तन जाती हैं और बाज़ुओं को ग़ैर पेशेवर तरीक़े से मोड़ना अधिकतर मुश्किल होता है । इस बीच कभी - कभार यदि आलपिन लग जाए तो 'मीठा दर्द' एक 'तीखी चुभन' में बदल जाता है। लेकिन सोचो थोड़ी सी चुभन भी तुम्हारे कपड़ों को तुम्हारे बाज़ुओं पर यथावत बनाए रखती है ।इसलिए सब कुछ दूरस्त रहने के लिए ज़रूरी है कि थोड़ी चुभन बची रहे । 



 आलपिन का सबसे क्लासिक काम क्या है ? कपड़ों की कमख़ूबसूरती का इलाज करना , कपड़ों के उन हिस्सों को कलात्मक तरीक़े से टाँक देना , सेट कर देना ,मैनेज कर देना जो ज़िंदगी की भाग दौड़ के बीच भद्दे ,कमज़ोर या अतिरिक्त रूप से लचीले हो गए हैं । क्या 'प्रेम भी ज़िंदगी का एक आलपिन नहीं है ।? हम रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इंसान होने की कमोबेश सभी त्रासदियों को ले कर जी रहे हैं । हमारे निराश मनों ने हमारी आत्मा को ढीला कर दिया है । हमारे दुखों के उरोज (स्तन ) ज़िंदगी के ब्लाउज़ों पर भारी पड़ गए है इसलिए हम सभी को एक आलपिन की ज़रूरत है । यह प्रेम का ही आलपिन है जो ज़िंदगी की सलवटों को खींचतान कर दूरस्त कर देता है ।

 हमारे समय की ज़िंदगी के लिहाफ़ इस सदी के सबसे कमज़ोर कपड़े हैं जो हमारी आत्मा पर देह बन कर झूल रहे हैं । इस दुनियो को , जो दिन पर दिन , ज़्यादा समझदार , बुद्धिमान और बेक़ाबू होती जा रही है ,उसे प्यार के ढेरों आलपिनों की ज़रूरत है । ज़रा आप अपनी बाँह पर चेक करिए ,क्या आपका आलपिन दूरस्त है ? क्या कहा , चुभता है ? मेरे दोस्त ! ज़िंदगी ख़ूबसूरत रहे तो थोड़ा सी चुभन तो सही जा सकती है ।

आशु 

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