निलोत्पल की किताब डार्कहॉर्स पढ़ने के बाद पहली प्रतिक्रिया

सिविल की तैयारी की अपनी एक आभा है । इस परीक्षा में Outcome का इतना Glorification है कि दूर से देखने पर तैयारी का दौर भी गौरवशाली लगता है ।UPSC की परीक्षा के आसपास उम्मीद की अनगिनत कहानियाँ है जो मुखर्जी नगर के तंग कमरों में हर रोज़ मोटिवेशन का उजाला भरती रहती है । आदमी सफल हो कर सिविल सेवक बन जाता है , और उसका सफल होना एक कहानी ,जिसे सालों -साल दोहराया जाता है ।
डार्कहार्स के लेखक Nilotpal ने इन उम्मीद से उफ़नाती कहानियों से भरे स्पेस में एक अलग तरह का दख़ल दिया है , जहाँ सिर्फ़ जीवन में सिविल सेवक बनने या नहीं बनने का सवाल नहीं है बल्कि सवाल उस रोज़मर्रा की कठिन ज़िंदगी का है जिसे कमज़ोर बैकग्राउंड का अभ्यर्थी हर दिन महसूस कर रहा है । नीलोत्पल इस विषय में आम तैर पर लिखी जाने वाली कहानियों की तरह दुखांत या सुखान्त को सम्बोधित नहीं करते , वह उस ज़मीन को पकड़ कर अपनी कहानी बुनते है जहाँ आउटकम की तैयारी हो रही है । नीलोत्पल परदे के पीछे की उस अमूल्य यात्रा से आप को रूबरू कराते है जिसका ट्रैवेलर भी तमाम कोशिशो के बावजूद सफल आउटकम का दावा नहीं कर सकता ।
कहानी का परिवेश मुखर्जी नगर का है, जो पिछले कुछ सालों से सिविल सेवक बनाने की फ़ैक्टरी के तौर पर जाना जाने लगा है । हर कमरे में उन परिंदो की तमाम कहनियां हैं जिन्हें हम दूर से ‘सिविल की तैयारी में लगे हुए लड़के’ कह देते हैं ।नीलोत्पल आप को सीधे -सीधे इन्ही कमरों में ले जाते हैं और कमरे दर कमरे घुमाते हुए आपको तब तक नहीं छोड़ते जब तक आप ‘एक महान सपने की तैयारी का धरातल ’ और साथ ही साथ इस जीवन का फ़लसफ़ा नहीं समझ जाते ।
मैं यहाँ कहानी नहीं लिखूँगा बस इतना कहूँगा कि निलोत्पल ने कुछ ऐसा लिख दिया है जो पहले नहीं लिखा गया है । वह आपको समवेदना के एक ऐसे स्पेस पर ले गए हैं जहाँ महान सपने को ले कर जिए जा रहे जीवन का अपना एकांत है ,अपनी घुटन है और अपनी मस्तियाँ है । दुनिया की नज़र में एक ख़ास समझा जाने वाला जीवन किस तरह अपनी उम्मीद , मायूसियाँ और सपने जीता है , डार्कहार्स इसी विषय से डील करती है ।
डार्कहार्स कोई मोटिवेशनल कहानी नहीं है । यह हमारे समय में घटित हो रही सबसे ईमानदार कहानियों में से एक है जहाँ सच अपनी सम्पूर्ण नग्नता के सामने बग़ैर लाग लपेट के हमारे सामने रख दिया गया है । फ़ैसला हमारा है कि हम बस सुखान्त की कहानियों में मगन रहें या संघर्ष के धरातल से साक्षात्कार करें । किताब ले कर इसे पढ़िएगा ज़रूर । क्योंकि हम सब के भीतर भी एक संतोष जैसा डार्क हार्स है जो दौड़ती दुनिया के बीच हिमा दास की तरह एकांत में जा कर ख़ुद को इकट्ठा कर रहा है ताकि बारी आने पर चैम्पियन बना जा सके ।
(नोट - यह पुस्तक समीक्षा नहीं है । वह सब लिखने की मेरी हैसियत नहीं है । हाँ , यह बस पहली प्रतिक्रिया है । इस किताब पर बहुत कुछ कहना और लिखना शेष है । कोशिश करूँगा चैनल पर जल्द ही इस पर विडियो बनाऊँ । किताब का अमेजन लिंक और चैनल का लिंक कमेंट बाक्स में है )

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