प्रेमचंद का उपन्यास रंगभूमि अतीत के उन अध्यायों का बहीखाता है, जिनका अंत आज तक नही हुआ है ।

दुनिया में बहुत कुछ बदल जाने के बाद भी जो नही बदला, वह है आदमी की अनादि लिप्सा । राज्य तमाम बदलावों के बावजूद भी अपने सर्वहारा बाशिंदो के प्रति उतना ही क्रूर रहा जितना अपनी बनावट की शुरुआत में था। हाँ, क्रूरता ने अपनी शक्ल ज़रूर बदली। शोषण ने अपने आपको ग्लैमरस बना लिया। स्टेट ने लोगों के दिमाग़ में लेज़िटिमेसी (वैधता) हासिल कर ली। देहात कम हुए पर मिज़ाज नहीं बदला। इसलिए वह सब कुछ जिसका हिसाब बहुत पहले हो जाना चाहिए था, उसका बही खाता आज भी बनता जा रहा है।प्रेमचंद का उपन्यास रंगभूमि अतीत के इन्ही अध्यायों का बहीखाता है, जिनका अंत आज तक नही हुआ है । 
हर आदमी का अपना लेखक होता है। मेरे लेखक निर्मल वर्मा हैं इसलिए किसी और को पढ़ना कभी जीना नही हो पाया। लेकिन रंगभूमि पढ़ते हुए एक टीस रह गई।लगा की संसार सचमुच एक रंगभूमि हैं जहाँ हर किसी के हिस्से में कुछ न कुछ घटित हो रहा है और हर किसी का घटाव एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। देहात के लोगों का आपसी प्रेम समझा तो ये भी समझ आया कि वह कभी एक हो कर लड़ क्यों नही सके। धर्म और आदर्श की ढेरों बातों के बीच विनय और सोफ़िया की उलझन बार -बार मुझे जीवन के एक अलग वितान में खींच ले जाती,जहाँ के जालों में मैं ख़ुद भी बहुत बेचैन रहा हूँ। आदिवासी आंदोलन और उनकी ज़मीन के सवाल पर सरकारों की छल भरी कार्रवाईयाँ रंगभूमि पढ़ते -पढ़ते आँखो के सामने सजल होने लगी। अतीत में लिखी गई इस किताब में जैसे प्रेमचंद ने हमारे आज को चुनौती दी है कि देख लो,क्या कुछ बदला है।
पढ़ते -पढ़ते एक आदमी बहुत पाक साफ़ दिखा। ये था सूरदास। सूरदास शासकों के सामने अंत तक टिका रहा,जब तक ढह नही गया। वह सत्य के लिए अपनो तक से टकराता रहा और बुरा बनता रहा, पर उसने भले -बुरे समझे जाने की परवाह न की। आदमी को ऐसे ही जीना चाहिए। सत्य के सामने नत आदमी भिखारी और अंधा हो कर भी अमर हो सकता है, यही सूरदास होने का सारांश है । राजाओं की छुद्रता दिखी, जो कई साल पहले हमारे बीच रह कर अपने द्वंदो,आशंकाओं और अपनी चाहनाओं से लड़ रहे थे। सूरदास के अलावा सुभागी ने भी प्रभावित किया। वह भैरों की पत्नी होने के बावजूद अंत तक सूरदास का साथ देती रही।इन दोनो के अलावा सोफ़िया और विनय भी इंसानी चरित्र के तौर पर सजग रहे, हम हर किसी को ब्लैक एंड वाइट के स्पेस में नही बाँट सकते,इंसान के चरित्र को ग्रे एरिया का फ़ायदा तो मिलना चाहिए।
यह किताब शायद आप सब ने ज़रूर पढ़ी होगी। मैंने इसे बहुत लेट पढ़ा है। यह किताब आपको देहाती आदमियों की उस मासूम और जटिल दुनिया में ले जाती है जहाँ इंसानों के चरित्र बहुत उलझे हुए है। हर आदमी एक सपूर्ण किरदार है और रंगभूमि ने उनके अभिनयों का संचयन । यह समाज और इंसानी चरित्र की एक सम्पूर्ण किताब है। नही पढ़ी है तो पढ़ी जानी चाहिए।
आशुतोष तिवारी

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