डियर IIMC
तुम अब अपने से नही लगते। मिज़ाज से कुछ बदले- बदले लगते हो। सरकारों के बदल जाने से तुम इस तरह बदल जाओगे, मैंने क़सम से नही सोचा था। चाय और देश के फ़्यूचर में फ़र्क़ होता है । एक की प्रेरणा से दूसरी जगह नही लेनी चाहिए जी । पत्रकारिता की क्लासों में हम ने सीखा था कि पत्रकार होना क्या बात है और अब तुम्हारी चाल ढाल देख कर जान रहा हूँ कि पैरोकर होना क्या बात है। तुम ने सरकार की पैरोकरी में पत्रकारिता के छात्रों से वफ़ादारी दाँव पर ऐसे लगा दी जैसे महाभारत में कथित कुलीन यधिस्थिर ने द्रौपदी को लगा दिया था या जैसे डार्कनाइट में ब्रूस वेन ने मैगीगेलेनहेल को लगा दिया था । तुम अपने छात्रों के कम लगते हो ,सरकार के ज़्यादा लगते हो। लोकतंत्र में लोक और तंत्र के बीच का भेद समझाते -समझाते तुम कब ‘तंत्र की समवेदन हीन शीत रेखा पर चले गए, हम संख्या रेखा के शून्य पर खड़े छात्र समझ ही नही पाए। तुम्हें ज़रूर भारत का मौजूदा प्रधान मेकअप आर्टिस्ट गाइड कर रहा है वरना इतनी जल्दी तो टिकटाक का मोंटी राय भी नही बदलता, जितना तुम बदल गए हो ।
डियर IIMC, मुझे यक़ीन है कि दूर -दराज़ से सपने ले कर आए छात्रों की फ़ीस पचास गुनी तक बढ़ा देने का फ़ैसला वही सरकारी मेकअप आर्टिस्ट कर सकता है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने कभी नीरो कहा था। इसलिए समझा जाए कि यह यह कड़वी बातें मैने तुम से नही कहीं है। तुम्हारी छाया में तो मैने बोलना सीखा है। यह तल्ख़ी उन लोगों के लिए है जिन्हें इस सरकार ने IIMC का प्रधान सेवक बना कर भेजा है। IIMC की फ़ीस पिछले तीन साल में 50 फीसदी तक बढ़ी है । रेडियो और टीवी पत्रकारिता की फ़ीस 1,68,500, अंग्रेजी पत्रकारिता की 95,500,हिंदी पत्रकारिता की 95,500,विज्ञापन और पीआर की 1,31,500 और उर्दू पत्रकारिता के लिए 55,500 रुपये। ऐसे में कोई ग़रीब किसान का बच्चा क्या पत्रकार बनने का सपना देख सकता है ? डियर IIMC, सत्ता के वाच डॉग गढ़ने वाला संस्थान, निम्न - मध्य वर्गीय भारत का ड्रीम हंटर कैसे बन गया, समझ नही आता । यह तो वही बात हो गई कि कोई ‘फ़क़ीर -फ़क़ीरी ‘ चिल्ला -चिल्ला कर सत्ता में आ जाए और फिर ग़रीबों के ज़रूरतों की सभी सरकारी साजों- सामान अमीरों को बेंच दे और अपने अमीर दोस्तों की मेहमानवाज़ी पर पैसे उड़ाए। क्या तुम उस आदमी की संगति में हो IIMC। यह कहने की वजह है क्योंकि तुम ने अब उसी आदमी की तरह झूठ बोलना भी सीख लिया है। दिसंबर में जब छात्र फ़ीस बढ़ने के विरोध में धरने पर बैठे थे तब तुम ने एक समिति बनाने की घोषणा की थी । इस समिति को दो मार्च तक अपनी सिफारिशें देनी थी। , लेकिन तुम ने चालू रफ़्तार दिखाते हुए 10 फरवरी को ही शुल्क जमा करने के लिए सर्कुलर जारी कर दिया। ऐसा क्यों किया गया। इस दौरान तुम्हारी नियत और संगति दोनो दोषमुक्त नही लगती दोस्त। हाव -भाव बदला -बदला सा लगता है।
बदलाव की कहानी हाल -फ़िलहाल से शुरू करूँ या केजी से? माने किस से। याद करता हूँ। स्मृति पढ़ी जा चुकी किताबों के क़रीब जा रही है। नाज़ी दौर की कला संस्थाओं में हिटलर ने अपने करिंदो को बैठा दिया था। हम ने आदिकाल में चारण कवियों के बारे में भी सुना है जो आश्रदाताओं की जी -हुज़ूरी में कविता लिखते थे। प्यारे IIMC, तुम ने भी पिछले चार -पाँच साल में सत्ता की ऐसी क्रूर कविता लिखी है कि IIMC के छात्रों को पाँच दफ़ा से ज़्यादा सड़कों पर उतरना पड़ा है। तुम्हारी कविता की कर्कशता से बचने के लिए आज भी कुछ बच्चे भूख हड़ताल पर बैठे हैं। तुम कविता सुनाओ,नीरो बाँसुरी बजाए और अब हम सब के लिए बचा ही क्या है। संस्थान का प्रधान, प्रधान सेवक का प्रवक्ता ज़्यादा लगता है संस्थान का प्रतिनिधि कम।ऐसा मैं नही कह रहा , उनका ट्विटर हैंडल कहता है। पहली दफ़ा संस्थान के छात्रों को उस आदमी ने थोक के भाव ब्लाक कर दिया जिस पर उनकी बात सुनने की ज़िम्मेदारी थी। आज जब छात्रों से बात करने का समय आया है प्रधान सेवक का यह करिंदा सरकारी कार्यक्रमों के प्रहसन में व्यस्त है।डियर IIMC , स्टूडेंट्स की मांग है कि नया फीस स्ट्रक्चर रद्द किया जाए, 11 स्टूडेंट्स का सस्पेंशन वापस लिया जाए और पुरानी कमिटी की रिपोर्ट जारी की जाए। स्टूडेंट्स का प्रदर्शन 3 महीने से चल रहा है । मैं तुम्हें भूखे उदरों के आगे बाँसुरी बजाता नही देख सकता। समय है, समझो ज़रा। सरकारों का आना -जाना लगा रहेगा लेकिन तुम्हारी ख़ुदी वह पत्रकार ही लिखेंगे जो आज भूख हड़ताल पर बैठे हैं और लोकतंत्र की बेहद ज़रूरी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं जो हम ने अपने बैच में नही निभाई थी।
आशुतोष तिवारी
पूर्व छात्र IIMC (2015-16 बैच)
(यूट्यूब चैनल का नाम - 'The Unbreakable Voice'
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