स्वरा भास्कर की 'रसभरी' से अतिरिक्त समस्या क्यों है?

प्राइम पर स्वरा भास्कर की सिरीज ' रसभरी '  पर विवाद और कला
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स्वरा कुशल अभिनेत्री हैं। पेशेवर अभिनय में पारंगत। वह सामाजिक रूप से वोकल  हैँ। उनकी वेब सीरीज आई है 'रसभरी' . उनका किरदार ऐसी अध्यापिक  का है जिनका व्यक्तित्व दोहरा है। एक तरफ तो वह अध्यापिका है। दूसरी तरफ हर मर्द को बिस्तर तक ले जाना चाहती हैं। आलोचकों ने इसे 'स्त्री की यौनिकता को जबरन अबूझ और समझ न आने वाला' मानने वाली कुंठित' मर्दवादी मानसिकता से जोड़ दिया है। मैने यह फ़िल्म नही देखी है। लेकिन उसकी आलोचना पढ़ी है। 

मुझे लगता है स्वरा भास्कर पर उम्मीदों का पहाड़ बेवजह टिकाया जा रहा है। स्वरा अभिनेत्री है। वह सिरीज की निर्देशक, लेखक या प्रोड्यूसर नही हैं। उन्होंने अपना काम किया है - 'अभिनय' । अगर इसमें कोई हर्ज या आलोचना है तो उसकी मुलम्मत होनी चाहिए लेकिन सिर्फ इसलिए कि उन्होंने इस सीरीज पर काम करना चुना, उनकी ट्रोलिंग ठीक नही। हॉलीवुड की प्रसिध्द अभिनेत्री मैगी गैलेनहेल ने 'द सिकरेटरी' में काम किया था। उनका रोल एक बेहद सबमिसिव लडक़ी का है जिसे अपने बॉस की यौन हिंसा से प्यार हो जाता है। तो क्या मैगी इसके किये दोषी है? मैगी की उस रोल में अभिनय को ले कर खूब तारीफ भी हुई है।
पर स्वरा, चूंकि सिर्फ अभिनेत्री नही है। वह सामाजिक रूप से दक्षिणपंथ के खिलाफ बेहद वोकल हैं। इसलिए जब से यह फ़िल्म आई, दक्षिणपंथी ट्रोल उन्हें 'बेइज्जत' करना शुरू कर चुके है।स्वरा को उनसे निपटना आता है। रसभरी पर स्वरा से सवाल करने वालो का दूसरा खेमा उदारवादियों का है, जिन्हें समाज शास्त्र की समझ है और जिन्होंने अपनी ज्यादा उम्मीद स्वरा पर लगा रखी है। जैसे रविश कुमार अगर गलती से एक शो मोदी की अतार्किक तारीफ में कर दे तो पूरा उदारवादी खेमा उनके खिलाफ उतारू हो जाएगा। स्वरा से वोकल व्यक्तितव से प्रभावित लोग उनके कमर्शियल काम मे भी उनकी वह मूर्ति खण्डित होते नही देखना चाहते हैं। वह हर तरह से उतने ही नैतिक आग्रह की उम्मीद स्वरा से जीवन के हर क्षेत्र में कर रहे है जैसी सामाजिक राजनीतिक मुद्दों पर उनकी समझ है । सीरीज तो ऐसी तमाम आ रही है पर सवाल इसीलिए शायद स्वरा से किया जा रहा है।कामर्शियक फ़िल्म है , अभिनय वह अच्छा करती है, इसी तरह का कंटेट इन दिनों नेटफ्लिक्स पर ट्रेंड भी है। 

जहां तक किसी तरह के  रचना कर्म की अलोचना की बात है। इसके दो नजरिये हैं।

कविता क्या है? अज्ञेय की भाषा मे शुरू से आखिर तक विशुध्द भाषिक संरचना। उसकी इयत्ता उसके शब्द, बंध, ध्वनि, पद योजना और रचना कौशल की इन्ही टेक्निक्स के इर्दगिर्द है। रचनात्मक कुशलता ही कला है। इसी तरह फ़िल्म भी एक स्वत्रन्त्र विधा है। शुरू से अंत तक विजुअल्स का कलात्मक संयोजन। उसकी अपनी स्वत्रन्त्र इयत्ता है। जिस तरह कविता की आलोचना सिर्फ रचनात्मक कौशल और इस्तेमाल की गई टेक्निक्स की चीर फाड़ से होनी चाहिए उसी तरह फ़िल्म की आलोचना भी निर्माणक तत्वो और उसके सटीक अनुपातिक संयोजन के आधार पर ही उचित है। कंटेंट से कहीं ज्यादा जरूरी है फॉर्म । यह एक कलावादी नजरिया है। इस नजरिए से मैंने रसभरी की आलोचना नही सुनी है। 

फिर क्या इतने भर से जिम्मेदारी पूरी हो गई। ऐसा मानने वाले कलावादियों से कहीं ज्यादा है कि कृति, रचनाकार के हाँथ से निकल चुकने के बाद स्वतंत्र है। अब उसकी एक सामाजिक जिम्मेदारी है।मसलन वह समकालीन परिवेश को किस तरह सम्बोधित करती है। महावीर प्रसाद द्विवेदी कहा करते थे कि यह देखा जाना बहुत जरूरी है कि रचना की सामाजिक उपलब्धि क्या है। प्रेम चन्द्र भी कला को सिर्फ कला के तौर पर नही पसन्द करते थे। यानी रचना की आलोचना  समकालीन सामाजिक राजनीतिक और वैचारिक अधारों पर होना चहिये। रसभरी के खिलाफ आवाज इसी नजरिये से आई है।

(नोट - यह एक नजरिया है।किसी को जवाब नही। क्योंकि आलोचना करने वालों में से कई लोगो की ज्ञान और समझ से मैं स्वयं सीखता हूँ। )

आशु
28/06/2020

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